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Wednesday, 24 June 2020

गलवान घाटी और चीन के साथ 1967 का विवाद

गलवान घाटी में जो हिंसात्मक झडप हुई है यह भारत और चीन के बीच 45 साल बाद हुआ है। यह दुखद है कि हमारे २० जवान शहीद हुए हैं। इसके पहले चीनी सेना ने  1975 में असम राइफल्स के जवानों को गोली मार कर हत्या कर दी किन्तु चीन इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दोनों सेना के जवाबी कार्यवाही के रूप में स्वीकार करता है।

      1975 से 8 साल पहले 1967 में भारत और चीन के बीच गोली बारी हुई थी जिसमे चाइना को भारी नुकसान उठाना पड़ा था और यह घटना 1962 के हार के बाद भारतीय सैनिकों में जो चीनी सेना के लिए दहशत बन गई थी हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया। मेजर जनरल वी के सिंह अपनी किताब "लीडरशिप इन द इंडियन आर्मी" में इस लड़ाई का विस्तार से जिक्र किया है

अयिए 1967 के विवाद को समझते है:- 

  सिक्किम के नाथुला और जे ले पला दर्रा के पास भारत के माउंट डिवीजन के सैनिक तैनात थे इसी के एकदम करीब चीनी सैनिक भी तैनात रहते है चीन हमेशा भारतीय सैनिक को यहां से हटने के लिए कहते रहते थे। सीमा पर तनाव बढ़ने पर जे ले पला से सैनिक तो हटे लेकिन नाथुला से लिफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह हटने को मना कर दिये, यहां से विवाद बढ़ने लगा । 6 सितम्बर 1967 को बॉर्डर पेट्रोलिंग के समय दोनों सेनाओं के बीच बहस शुरू हुई और ये बहस झड़प का स्वरूप  लेते चला गया जिसमें चाईनीज कमांडेंट "कमिसार" गिर गए  तथा उनका चश्मा टूट गया इसके पश्चात वह वापस चला गया । इस घटना के पश्चात भारतीय जवान पेट्रोलिंग में झडप से बचने के लिए 11 सितम्बर 1967 को बाड़ बनाने का कार्य शुरू कर दिए। कुछ देर में कमिसार फिर से आए और खुले में खड़े भारतीय सैनिकों पर मीडियम मशीनगन से गोली चलाने लगे इधर से कैप्टन डागर एवं कैप्टन हरभजन सिंह भी मीडियम मशीनगन से चढ़ाई शुरू की किन्तु दुर्भाग्य वश चीनी गोली के शिकार हो गए और  इस तरह हमारे तकरीबन 70 जवान शहीद हो गए । बिना ऊपरी अधिकारियों के आदेश का इंतजार किए लिफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह तोप से गोला दागने का आदेश दे दिए और चीनी सैनिकों को उस जगह से भागना पड़ा । जब 14 सितम्बर 1967 को यह गोलीबारी रुकती है तब तक चीन के 300-400 सैनिक मारे जा चुके थे और हमारे लगभग 80-100  सैनिक शहीद हो चुके थे। इस लड़ाई से भारतीय सैनिकों का साहस दुगुना हो गया और जब २० दिन बाद चोला नामक जगह पर चीनी सैनिक झडप करने आए तो भारतीय जवान चीन की सेना को 3 किलो मीटर तक पीछे धकेल दिया और आज भी यहीं चीन की सेना अपनी सीमा मान कर निगरानी करती है, इससे आगे नहीं आयी, जिसे कंबैरेक्स कहते है।
    आज भी वही साहस वही जज्बा भारतीय जवानों में मौजूद है आज तो हमारे पास उस समय की अपेक्षा ज्यादा रक्षा उपकरण मौजूद है हमें पूरा विश्वास है कि चीन को इसका जवाब पहले से ज्यादा मजबूती से दिया जाएगा हमारे एक भी सैनिक की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी ।


लेखक : योगेश पांडेय

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