काँग्रेस को सबसे पहले अपने गद्दार सहयोगियों की हजामत करनी चाहिए। उनमें सबसे पहला नाम "शरद पवार" का है जो मोदी की गलवान घाटी की नाकामी को 1962 के युद्ध की हार से तुलना करके बचाव कर रहे हैं।
शरद पवार भारतीय राजनीति का सबसे अविश्वसनीय शख्स है जो जिन्दगी भर काँग्रेस के टुकड़ों पर रहे और जब मौका मिला उसे ही डस भी लिया।
भाजपा और उसके नेताओं के पास अपनी सरकार की नाकामी छिपाने का एक ही तरीका है , इतिहास में हुई वैसी ही नाकामी को सामने रख कर खुद पर लग रहे नाकामी के आरोपों से ध्यान भटकाना।
क्या इसीलिए देश की जनता से सत्ता माँगी थी ? कि मुझसे भी वही नाकामी हाथ में आएगी जो पहले आई थी।
गलवान घाटी की बात करो तो 1962 की हार सामने रख कर गलवान घाटी के छिन जाने का बचाव किया जाता है। 20 सैनिकों की शहादत को उनकी वीरता बताकर सरकार अपनी नाकामी का बचाव कर रही है।
वह वीर थे , पर हकीकत यह है कि उनको चीन ने शहीद कर के गलवान घाटी पर कब्ज़ा कर लिया है। इसका जवाब सरकार को देना चाहिए तो मीडिया के ज़रिए फालतू के ड्रामे कर बहस को भटका रही है।
क्या काँग्रेस की पूर्व की सरकारों में जो बुरा हुआ वही यह सरकार भी करेगी ? ऐसे तो देश में पहले बहुत कुछ बुरा हुआ है।
ध्यान दीजिए कि 1947 में पाकिस्तान भी बना था।
क्या भाजपा भविष्य में भारत के एक और विभाजन को भी इसी उदाहरण को सामने करके उसका बचाव करेगी ? एक प्रधानमंत्री की हत्या भी हुई थी , क्या भाजपा उसको भी सामने रख कर किसी और प्रधानमंत्री की हत्या का बचाव करेगी ?
निंदनीय है।
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