- भौगोलिक दृष्टि के कारण 300 साल से चली आ रही है परम्परा
सुभाष
बांसवाड़ा, 06 जुलाई (हि.स.)। जनजातीय
जिले बांसवाड़ा समेत वागड़ क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और खगोलीय
ग्रह-नक्षत्रों की चाल ने यहां हिन्दी महीनों की गणना में स्थानीय धार्मिक
मान्यताओं के अनुरूप अंतर बना लिया है। हालांकि इस अंतर से तीज-त्योहारों
की तिथियों पर कोई असर नहीं है। ये समान रूप से मनाए जाते रहे हैं।
बांसवाड़ा के अलावा डूंगरपुर, सौराष्ट्र, आधा महाराष्ट्र और पूरे गुजरात
में भी 15 दिन बाद ही सावन शुरू होता है। इसलिए यहां के पंडित किसी मुहूर्त
या लग्न पत्रिका आदि में आषाढ़ आदि संवत अंकित करते हैं।
ज्योतिषियों
के अनुसार हिन्दी महीनों की गणना चन्द्रमा की घटती-बढ़ती कलाओं व उसकी
पूर्णता के आधार पर शुक्ल पक्ष व कृष्ण पक्ष की तिथियों का एक चक्र पूरा
होने की अवधि से की जाती रही है। ये तिथियां सभी जगह प्रचलित व मान्य है,
पर वागड़ अंचल में हिन्दी वर्ष का एक महीना श्रावण 15 दिन बाद शुरू होता
है। इसका कारण है कि अन्य स्थानों पर पूर्णिमा से पूर्णिमा तक हिन्दी
महीनों की गिनती की जाती है, जबकि वागड़ अंचल में अमावस्या से अमावस्या तक।
इसी के चलते यह अंतर है। जहां पूरे देश-प्रदेश में श्रावण मास के आधा
गुजरने पर हरियाली अमावस्या मनाई जाती है, वहीं वागड़ क्षेत्र में इस तिथि
से श्रावण मास की शुरुआत होती है। वागड़ अंचल में सावन माह 15 दिन बाद से
शुरू होने के पीछे एक मुख्य कारण सूर्य की गति और कर्क रेखा का यहां से
गुजरना भी है। शहर के पंडित व ज्योतिष शास्त्रों का ज्ञान रखने वालों के
अनुसार गुरु पूर्णिमा तिथि से सूर्य कर्क रेखा में प्रवेश कर जाता है। इसी
तिथि से सभी जगह आषाढ़ माह की विदाई और सावन की शुरुआत हो जाती है, लेकिन
वागड़ में इस तिथि के बाद आने वाली पहली अमावस्या यानी हरियाली अमावस्या से
सावन की शुरुआत मानी जाती है।
पंडितों
के अनुसार इस तिथि से ही वागड़ में हिन्दी साल की गणना होती है। इसके
अलावा दूसरा मुख्य कारण यह भी बताते हैं कि संवत 1700 से पूर्व तक वागड़
क्षेत्र मेवाड़ के रजवाड़ों के संपर्क में था, उसके बाद से यह अलग हो गया
और गुजरात के नजदीक होने से यहां के रहन-सहन, भाषा, धर्म-कर्म आदि जैसी
संस्कृति का प्रभाव लोगों पर असर जमाता गया। गुजराती और वागड़ी भाषा भी
मिलती-जुलती है। गुजरात के सभी हिन्दी पंचांगों में अमावस्या से अमावस्या
तक हिन्दी महीनों की गिनती होती है। इसी के असर से वागड़ में भी अमावस्या
से अमावस्या तक महीनों की गिनती की जाती है।
बांसवाड़ा
को लोढ़ी काशी भी कहते हैं। प्रदेश में अकेला वागड़ क्षेत्र ही ऐसा है,
जहां साढ़े बारह ज्योतिर्लिंग हैं। जिनमें कागदी स्थित अंकलेश्वर महादेव,
वनेश्वर क्षेत्र स्थित वनेश्वर महादेव, नीलकंठ महादेव, धनेश्वर, कालिका
माता स्थित रामेश्वर महादेव, राज तालाब स्थित धुलेश्वर महादेव, महल स्थित
बिलेश्वर महादेव, नागरवाड़ा में नीलकंठ महादेव, चांदपोल गेट मालीवाड़ा में
गुप्तेश्वर महादेव, सिद्धनाथ महादेव जवाहर पुल, त्रयम्बकेश्वर महादेव एमजी
अस्पताल के पास, घंटालेश्वर महादेव और अद्र्ध स्वयंभू भगोरेश्वर महादेव
महालक्ष्मी चौक स्थित है।
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