मैं आपको बताता हूँ कि मैं असंतोष पैदा करने वाला क्यों बन गया हूं।
मैं अदालत को भी यह भी बताऊंगा कि मैंने भारत में सरकार के प्रति असंतोष को बढ़ावा देने के आरोप में खुद को दोषी क्यों माना है- जिन जज के सामने हर कोई खुद को निर्दोष बताता था, वह भौचक्का हो पहले ऐसे शख्स का चेहरा निहार रहा था, जो बगैर बहस, खुशी से खुद को दोषी करार दे रहा है, ऊपर से उसके तर्क भी बता रहा है।
1922 में यंग इंडिया में लेख के आधार ओर गांधी पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया था। पुलिस ने पकड़ा, जज के सामने पेश किया। गांधी ने आरोप छाती ठोककर स्वीकारा, खुद को राजद्रोही बताया।
यह देश मे गांधी की स्वीकार्यता को अचानक ही इतनी उछाल दे गया, जिसकी अंग्रेज सरकार ने कल्पना नही की थी। असहयोग आंदोलन की असफलता के बाद गांधी की विश्वनीयता और लीडरशिप दांव पर थी। आपदा को अवसर में बदलते हुए गांधी ने वो दांव खेला, कि सरकार उलझ गयी। न चाहते हुए सजा देनी पड़ी। फिर कम्यूट भी करनी पड़ी।
पूरे प्रकरण में हुआ बस ये कि, जनता में गांधी की शुध्दता और हिम्मत जनमन में स्थापित हुई। इसके बाद राजद्रोह का आरोप लगाकर फसने का काम ब्रिटिश सरकार ने दोबारा नही किया।
-
अन्ना आंदोलन का बड़ा खास मोड़ था जब सरकार ने अन्ना को साथियों सहित तिहाड़ में जेलबन्द किया। मुद्दा तूल पकड़ने पर सरकार ने उन्हें छोड़ना चाहा, तो उनकी टीम ने जमानत लेने से इनकार कर दिया। बगैर जमानत के छोड़े जाने के आदेश होने पर भी जेल छोड़ने से इनकार कर दिया।
उनका कहना था कि अनुमति के बगैर आंदोलन और भूख हड़ताल की वजह से उन्हें गिरफ्तार किया गया है, वह निकलते ही फिर वही करेंगे, आप फिर गिरफ्तार करेंगे। तो बेहतर है हम निकलें ही नही।
सरकार ने हाथ जोड़कर जेल से बाहर निकाला। मजबूरन आंदोलन की अनुमति दी। आंदोलन रातोरात बड़ा हो गया।
-
भाजपाई नेता की महंगी बाइक को कॅरोना लॉकडाउन के दौरान बगैर मास्क, सवारी करते चीफ जस्टिस की तसवीरें आयी। प्रशांत भूषण ने यही लिखकर ट्वीट कर दिया। कोर्ट ने स्वतःस्फूर्त संज्ञान लेकर कंटेम्प्ट का मामला दायर किया है।
प्रशांत भूषण महात्मा गांधी की तरह खुद वकील हैं, अन्ना आंदोलन के शिल्पकार रहे हैं। मैं उम्मीद में हूँ कि इस आपदा को अवसर में बदलकर दिखाएंगे।
मनीष सिंह जी की वाल से साभार।
No comments:
Post a Comment