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Thursday, 30 July 2020

भूमि उपचार कार्यक्रम से गन्ने की उपज में वृद्धि के साथ फसल में लगने वाले कीट तथा बीमारियों में भी कमी आई

प्रदेश सरकार, गन्ना किसानों की उन्नति एवं सर्वांगीण विकास हेतु प्रतिबद्ध है। गन्ना विभाग द्वारा विगत 03 वर्षों में गन्ना किसानों को आत्मनिर्भर बनाने व उन्हें गन्ना खेती की आधुनिकतम वैज्ञानिक तकनीक से जोड़कर उनकी आय दोगुनी करने के लिए कई ठोस कदम उठाए गए हैं।


चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग द्वारा किए गए प्रयासों से उत्तर प्रदेश के लाखों गन्ना किसान लाभान्वित हो रहे हैं।

गन्ना किसानों की खुशहाली के लिए उन्हें उन्नतशील तकनीक से जोड़ने की आवश्यकता है। जिसके लिए विभाग द्वारा उन्नतशील त्रिस्तरीय बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत गन्ना कृषकों को स्वस्थ एवं रोग रहित 242 लाख कुंतल उन्नतशील गन्ना बीज का वितरण कराया गया।

इससे प्रदेश की औसत उपज 81.1 टन/हे. प्राप्त हुई है तथा कृषकों की आय में ₹1,920 प्रति हे. की बढ़ोत्तरी हुई है। इस कार्यक्रम के सफल संचालन से अस्वीकृत गन्ना प्रजाति, जो कुल गन्ना क्षेत्रफल का 5.4% थी, घटकर मात्र 0.5% रह गई है।

भूमि उपचार कार्यक्रम के अन्तर्गत बायोफर्टिलाइजर एवं वर्मी कम्पोस्ट के प्रयोग से गन्ने की उपज में वृद्धि के साथ फसल में लगने वाले कीट तथा बीमारियों में भी अत्यधिक कमी आई तथा कृषकों की आय में भी वृद्धि हुई है। 

शरदकालीन गन्ना बुवाई के अन्तर्गत ट्रैंच विधि एवं सहफसली खेती कार्यक्रम के माध्यम से प्रदेश के किसानों द्वारा लगभग 2 लाख हे. में ट्रैंच विधि से बोये गन्ने के साथ आलू, लहसुन, हरी मटर, मसूर आदि की सहफसली खेती की गई। 

सहफसली खेती से किसानों को गन्ना उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ एक अतिरिक्त फसल की प्राप्त हुई तथा लगभग ₹1,13,640 प्रति हे. की अतिरिक्त आय मिली।

विभाग द्वारा गन्ने की फसल हेतु पेड़ी प्रबंध कार्यक्रम के माध्यम से खेत की नमी सुरक्षित रहती है, फलस्वरूप गन्ने की सिंचाई में बचत होती है तथा फसल में काला चिट्टा कीट भी नहीं लगता है।

गन्ना विभाग द्वारा जल संचयन के दृष्टिगत गन्ने के खेतों में ड्रिप सिंचाई संयंत्र की स्थापना कराई जा रही है। इससे सिंचाई हेतु पानी की खपत में कमी आने के साथ ही सहफसली खेती करने में गन्ना कृषकों को सुविधा हुई है, जिससे कृषकों की आय में वृद्धि हुई है।

गन्ना विभाग द्वारा किए गए प्रयासों से विगत 03 वर्षों में ड्रिप सिंचाई से सिंचित क्षेत्रफल 600 हे. से बढ़कर 17,000 हे. हो गया है। प्रदेश में 1.21 लाख मी. टन उर्वरक कृषकों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार वितरित कराया गया। 

मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार गन्ने की फसल में उर्वरकों के प्रयोग में लगभग 25% तक की कमी आएगी तथा उनकी आय में 4.3% की वृद्धि हुई। इससे मानव स्वास्थ्य को भी लाभ होगा। 

उन्नतशील खेती के अन्तर्गत 10 लाख हे. गन्ने में ट्रैंश मल्चिंग कराया गया है। इस विधि में सूखी पत्तियों को सड़ाकर खाद के रूप में उपयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति (ऑर्गेनिक कार्बन) में वृद्धि होती है।

इसके साथ ही, खरपतवार एवं कीटों के प्रकोप में कमी आती है तथा ट्रैंश मल्चिंग विधि को अपनाने पर सिंचाई संसाधनों में बचत के साथ ही कृषकों की आय में ₹4,500 प्रति हे. की वृद्धि भी हुई है। 

गन्ना उत्पादन के साथ-साथ परंपरागत खेती भी उन्नतशील कृषि का एक माध्यम है। विभाग द्वारा गन्ना कृषकों के मध्य क्षेत्र विशेष के अनुसार पशु पालन, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन, मधुमक्खी पालन, बकरी पालन को भी बढ़ावा दिया जा रहा है।

इससे किसानों की वैकल्पिक आय बढ़ेगी एवं खेती हेतु कार्बनिक खाद की उपलब्धता बढ़ने से भूमि की उर्वरा शक्ति में भी वृद्धि होगी। 

गन्ना विभाग द्वारा अनूठी पहल करते हुए ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गन्ने की बुवाई हेतु नर्सरी तैयार करने में महिला स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षण प्रदान करने की योजना लागू की गई है।

प्रशिक्षण के माध्यम से अब तक विभाग द्वारा लगभग 415 स्वयं सहायता समूहों की 4,115 ग्रामीण महिला उद्यमियों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। 

इस योजना का उद्देश्य सिंगल बड और बड चिप के माध्यम से नवीन गन्ना किस्मों का आच्छादन बढ़ाना है। इस योजना से ग्रामीण महिलाओं में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी एवं प्रत्येक स्वयं सहायता समूह को लगभग ₹20,000 से 25,000 की अतिरिक्त आय होगी।

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