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Wednesday, 29 July 2020

बीमारी से होने वाली मृत्यु दर को बढ़ा चढ़ाकर बतलाया जा रहा है।

मरे को मारे शाह मदार। ......यह कहावत सुनी होगी आपने। ..... 



कुछ देर पहले खबर आई है कि मुंबई के स्लम एरिया में रहने वाले 57 फीसदी लोगों के शरीर में ऐंटीबॉडी पायी गयी इसका मतलब यह है कि इन्हें कोरोना हुआ था और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी। जबकि स्लम में रहने वाले व्यक्ति कैसे अस्वास्थ्यकर माहौल में रहते है हम सब जानते है। .....उनका इम्युनिटी लेवल भी संदिग्ध रहता है।


मुंबई में जुलाई महीने के पहले 15 दिन में तीन वार्ड आर नॉर्थ, एम-वेस्ट, एफ-नॉर्थ के झुग्गी बस्ती में रहने वालों और झुग्गी से इतर इलाकों में रहने वालों के 6,936 नमूने लिए गए। इसमें पता चला कि शहर में बिना लक्षण वाले संक्रमण से पीड़ित लोगों की संख्या काफी ज्यादा है। बीएमसी ने बताया कि स्टडी में खुलासा हुआ है कि स्लम में रहनेवाली 57 फीसदी आबादी और गैर झुग्गी क्षेत्रों की 16 फीसदी आबादी के शरीर में ऐंटीबॉडी बन गए हैं।

मुंबई के इस सीरो सर्वे में पता चलता है कि संक्रमण से होने वाली मृत्यु दर काफी कम है और 0.5-0.10 फीसदी की रेंज में है।

बीएमसी ने प्रेस रिलीज जारी कर बताया, ‘यह परिणाम हर्ड इम्युनिटी के बारे में और अधिक जानकारी हासिल करने में महत्वपूर्ण है।’ बीएमसी ने कहा कि इस संबंध में दूसरा सर्वे होगा जो कि वायरस के प्रसार और हर्ड इम्युनिटी विकसित हुई या नहीं इस पर जांच करेगा। 

हर्ड इम्युनिटी एक प्रक्रिया है। इसमें लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है। वह चाहे वायरस के संपर्क में आने से हो या फिर वैक्सीन से। अगर कुल जनसंख्या के 75 प्रतिशत लोगों में यह प्रतिरक्षक क्षमता विकसित हो जाती है तो हर्ड इम्युनिटी माना जाता है। फिर चार में से तीन लोग को संक्रमित शख्स से मिलेंगे उन्हें न ये बीमारी लगेगी और न वे इसे फैलाएंगे। एक्सपर्ट मानते हैं कोविड-19 के केस में हर्ड इम्युनिटी विकसित होने के लिए 60 प्रतिशत में रोग प्रतिरोधक क्षमता होनी चाहिए।

यह सर्वे बता रहा है कि बीमारी से होने वाली मृत्यु दर को बढ़ा चढ़ाकर बतलाया जा रहा है, अगर कोविड के खाते में डाली जाने वाली मृत्यु का आप सही ढंग से विश्लेषण करेंगे तो आप पाएंगे कि दुसरी बीमारियों से हुई मौतों को कोविड में गिना जा रहा है  अगर ठीक से विश्लेषण किया जाए तो यह पता लगेगा कि यह बीमारी संक्रामक जरूर है लेकिन संक्रमण उतना  घातक नहीं है जितना कि दावा किया जाता रहा है । 

गिरीश मालवीय की रिपोर्ट।

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