जब भारत में पहली बार लाक डाउन आया तो हमारे प्रसिद्धि पसंद प्रधान मंत्री को इसकी घोषणा करने का बड़ा शौक चढ़ा।
विदेशों में भी लाक डाउन हो रहे थे।
हमारे प्रधान मंत्री दिखाना चाहते थे कि उनमें किसी दुसरे देश के प्रधान मंत्री से कम योग्यता नहीं हैं।
हांलाकि तब कोरोना का संक्रमण सारे देश में नहीं फैला था।
लेकिन चूंकि घोषणा महामानव के द्वारा करी जानी थी इसलिए वो बात पूरे भारत पर तो लागू होनी ही चाहिए।
तो बेजरूरत का लाक डाउन हर जिले और हर गाँव में लगा दिया गया।
मजदूरी खेती दुकानदारी रेहडी रिक्शा ढाबा आफिस सब लोगों को पीट पीट कर बंद करवाया गया।
फिर वही हुआ जो होना था।
करोड़ों लोगों को इधर से उधर पैदल जाना पड़ा करोड़ों लोग बेरोजगार हो गये।
जब लोग गुस्सा होने लगे तो लाक डाउन की जिम्मेदारी प्रधान मंत्री ने मुख्य मंत्रियों पर डाल दी।
मुख्य मंत्रियों ने वह जिम्मेदारी जिले के कलेक्टरों पर डाल दी।
अब लाक डाउन लगाना या नहीं लगाना यह फैसला जिले के कलेक्टर कर रहे हैं।
यही सही तरीका है।
भारत में एक सिस्टम बना हुआ है।
वह अच्छा है कि बुरा है वह चर्चा हम यहाँ नहीं कर रहे।
लेकिन एक सिस्टम बना हुआ है।
लेकिन मोदी ने सत्ता में आते ही खुद को पूरे सिस्टम का बाप दिखाना शुरू कर दिया।
नमो एप, मोदी एप जैसे एप लांच किये गये।
लोगों से कहा गया अपनी परेशानी सीधे प्रधान मंत्री को बताइये।
बजाय इसके कि सिस्टम को सुधारा जाता उसकी बजाय एक व्यक्ति को सिस्टम से बड़ा बनाया गया।
इसी इस्टाइल के चलते बिना रिजर्व बैंक से सलाह किये नोट बंदी लागू कर दी गई।
सारे फैसले प्रधान मंत्री कार्यालय से हो रहे हैं।
मंत्री मंडल संसद सरकार किसी का कोई महत्व ही नहीं बचा है।
यह रास्ता तानाशाही की तरफ जाता है।
तानशाही के लिए बर्बादी लाना भी जरूरी होता है।
ताकि आप बर्बादी से निकलने में अपनी आजादी समझ अधिकार सब छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएँ।
राजीव शंकर मिश्र
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