उत्तर प्रदेश में विपक्ष की जगह फिलहाल खाली है।
काँग्रेस अभी इसी में उलझी है कि भाजपा और मोदी पर किस तरह का आक्रमण करे , टीपू भईया सपरिवार बाबा के शरण में जा कर आत्मसपर्पण कर चुके हैं और केजलीवाल के फार्मुले पर चल कर सत्ता पाना चाहते हैं तो माया अब भाजपा की प्रवक्ता बन गयी हैं।
उत्तर प्रदेश में केन्द्र और राज्य की सरकारों को लेकर अब विचार बदल रहे हैं , कैडर के अतिरिक्त जो फ्लोटिंग वोटर है उसमें इन दोनों सरकारों के प्रति गुस्सा पैदा होता जा रहा है। विशेषकर ब्राम्हण वर्ग बाबा की जातिवादी राजनीति से क्षुब्द है।
जनता सोचने लगी है कि बाबा की "ठोको नीति" में एक भी ठाकुर क्युँ नहीं ? सिर्फ यादव , पंडित , दलित , पिछड़े और मुसलमान क्युँ हैं ? राजा भईया बाहर क्युँ है ?
काँग्रेस इसका फायदा उठा सकती है , काँग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू अन्य की अपेक्षा कहीं अधिक ऐक्टिव तो ज़रूर हैं पर उनमें वह आकर्षण नहीं कि वह जनादेश को अपने पक्ष में कर सकें।
प्रियंका गाँधी के लिए यह बेहतरीन अवसर है , पर वह वीडियो पालिटिक्स से अधिक कुछ नहीं कर पा रही हैं। उनको सीमित लोगों के साथ सोशल डिस्टेन्सिंग करके ज़मीन पर उतरना चाहिए।
प्रदेश की जनता एक विकल्प का अब इंतज़ार कर रही है।
उनका चेहरा प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के लिए रामबाण साबित हो सकता है।
No comments:
Post a Comment