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Wednesday, 8 July 2020

भारत रत्न बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के घर में तोड़फोड़, अपराधी गिरफ्त से बाहर।

ये बाबा साहब डॉ.अंबेडकर का घर "राजगृह"है। मुम्बई में स्थित है। खबर है कि डॉ. अंबेडकर के घर में तोड़फोड़ की गई गई। ये घटना 7 जुलाई की है। जहां गमले तो तोड़े ही गए, सीसीटीवी कैमरे भी तोड़ डाले गए। “राजगृह” को बाबासाहेब ने विशेषरूप से अपनी किताबों के लिए तैयार किया था। 

यहाँ अपनी निजी लाइब्रेरी में उन्होंने पचास हज़ार के क़रीब किताबें इकट्ठा की थीं। अब वहाँ एक संग्रहालय भी है। सवाल यही है कि ये लोग इन किताबों को हटाकर कौन सी किताबें रखना चाहते हैं? डॉ. अंबेडकर को हृदयस्थ हुए साठ साल करीब हो गईं, लेकिन ये लोग डॉ. अंबेडकर के विचार भर से इतने डरे हुए क्यों हैं कि अंबेडकर की किताबें, गमले, उनके मकान तक को तक ढहा देना चाहते हैं।

वैसे तो ये खबर नेशनल मीडिया पर डिबेट्स के लिए तय मानकों पर खरी नहीं उतरती, क्योंकि नेशनल मीडिया पर डिबेट के लिए "मुसलमान, मस्जिद, चीन, उत्तर कोरिया, ट्रम्प, इमरान खान, जिहाद, गाय, गोबर" का होना अनिवार्य रूप से जरूरी है। ऊपर से ये कोई विवेकानंद की मूर्ति या उनका आवास तो नहीं है कि इसके आसपास बैठने पर भी, टीवी का एंकर गला फाड़-फाड़ कर अपनी ही जान ले ले। शायद इसपर स्थानीय अखबार ही कोई छोटी मोटी सी खबर लिखें, शायद वे लिखें कि किन्हीं शरारती तत्वों ने "राजगृह" को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। कुछ अखबारों के लिए ये लोग शरारती तो कुछ के लिए ये लोग "अज्ञात" हो सकते हैं। लेकिन कोई नहीं कहेगा कि ये मनु की नव पीढ़ियां हैं। हमारे लिए ये विचार, ये लोग अज्ञात नहीं हैं, अगर ये ज्ञात नहीं हैं तो फिर कौन ज्ञात हैं? ये विचार तो सदियों पुराना चिर-परिचित है। ये कोई अज्ञात विचारधारा नहीं हैं। 

डॉ. अंबेडकर करोड़ों लोगों के लिए भगवान जितने नहीं हैं, बल्कि भगवान से अधिक हैं। विशेषकर दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों के लिए। दलित अस्मिता से जुड़ी गिनी चुनी दो चार धरोहरों में से एक "राजगृह" है। वर्ष भर लाखों की संख्या में आम जनमानस ख़ासकर 14 अप्रैल और 06 दिसम्बर के दिन अपने सर्वकालिक नेता की यादों से जुड़ने के लिए ‘राजगृह’ पहुंचते हैं। अगर वह भी नहीं बचेगा तो दलितों पर तो कोई भी ऐसी जगह नहीं बचती जहां वे कह सकें कि ये अपनी है, ये हमारे पुरखों की है। राजगृह पर हमला डॉ. अंबेडकर पर हमला है और डॉ. अंबेडकर पर हमला "आजादी और समानता" के विचार पर हमला है। आजादी और समानता के विचार पर हमला देश के संविधान पर हमला है। धर्मांध और जाति विशेष की मदमस्त भीड़ अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों पर कारसेवा से प्रमोशन लेते हुए बाकी तबकों के आस्था स्थलों पर कारसेवा के लिए पहुंच चुकी है। यही वही वाली है कि "अगला नम्बर आपका है"

इस देश में दलितों से जुड़ी राष्ट्रीय धरोहरें तक सुरक्षित नहीं हैं, जबकि इनकी सुरक्षा व्यवस्था कितनी चाक-चौबंद होती है, ऊपर से मुम्बई जैसे महानगर में स्थित है तब ये हालत है। गांव में रहने वाले दलितों की सुरक्षा की स्थिति क्या रहती होगी अंदाजा आ अंदाजा लीजिए. वर्चस्ववादियों को गांव में सीसीटीवी उखाड़ने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती होगी, न ही वहां गार्ड्स होते हैं और मीडिया का तो अता पता ही नहीं रहता, क्योंकि मीडिया अभी चीन, पाकिस्तान और मुसलमानों पर व्यस्त है। ऊपर से ये कि थानेदार से लेकर एसपी तक सब उसी कास्ट से होते हैं जिनपर कि आरोप है। 

सरकार को इस कायरना हरकत पर तुरंत जबाव देना चाहिए अन्यथा यही माना जाएगा कि ये सब उनकी शह में किया जा रहा है।

लेखक : श्याम मीरा सिंह

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