हाल के वर्षों में उच्चतम न्यायालय के सबसे प्रभावी न्यायाधीशों की बात करें तो उनमें न्यायतमर्ति अरुण कुमार मिश्रा का नाम प्रमुखता से आता है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण पर अदालत की अवमानना के मामले में एक रुपये के जुर्माने का मामला हो या उनके द्वारा दिए गए अन्य फैसले, उनका नाम अकसर मीडिया की सुर्खियों में रहा।
तीन सितंबर 1955 को वकीलों के परिवार में जन्मे न्यायमूर्ति अरुण
कुमार मिश्रा के पिता हरगोविंद मिश्रा जबलपुर उच्च न्यायालय में न्यायाधीश
थे। वह दिसंबर 1977 में न्यायाधीश नियुक्त हुए थे और जुलाई 1982 में पद पर
रहते उनका निधन हुआ था।
अरुण मिश्रा के भाई विशाल मिश्रा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में
न्यायाधीश हैं। उनकी पुत्री भी दिल्ली उच्च न्यायालय में वकील हैं और उनके
परिवार में कई रिश्तेदार नामी वकील हैं।
यहां यह जान लेना
महत्वपूर्ण होगा कि कानून के जानकारों के परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने विज्ञान में स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई की
लेकिन उनकी स्वाभाविक रुचि कानून में ही थी, इसलिए उन्होंने बाद में कानून
की पढ़ाई की।
उन्होंने 1978 से 1999 के बीच मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में
वकालत की। इस दौरान वह संवैधानिक, दीवानी, औद्योगिक, सेवा संबंधी और
आपराधिक मामलों में प्रैक्टिस किया करते थे। 1998 में वह 43 वर्ष की आयु
में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने और वकीलों के हक
में कई महत्वपूर्ण कार्य किए।
उल्लेखनीय है कि लगभग 21 वर्ष की वकालत के दौरान वह मध्य प्रदेश
में ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय से जुड़े रहे और वहां के छात्रों को
कानून पढ़ाते रहे।
पच्चीस अक्टूबर 1999 को वह दिन आया जब उन्हें
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया और इसके साथ ही
उन्होंने ‘माई लॉर्ड’ कहना छोड़ दिया तथा दूसरे वकील उन्हें ‘माई लॉर्ड’
बुलाने लगे। वह 2010 में राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने और
2012 में वह कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने। 2014 में
केन्द्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनने के बाद वह उच्चतम
न्यायालय के कॉलेजियम की सिफारिश पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त
किए गए।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा गत दो सितंबर को 65 वर्ष की आयु में
सेवानिवृत्त हुए। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पद पर रहने के दौरान वह कई
बार विवादों और आलोचनाओं के घेरे में रहे। कई अति संवेदनशील मामले उनकी
अदालत में सूचीबद्ध किए जाने को लेकर भी कई बार सवाल उठाए गए और कुछ मामलों
पर उनके फैसलों पर भी उंगली उठी।
न्यायाधीश के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान न्यायमूर्ति अरुण
कुमार मिश्रा ने हजारों मामलों में फैसला सुनाया। उनके कुछ फैसलों की
आलोचना भी हुई और इसी साल फरवरी में उन्होंने सार्वजनिक तौर पर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा कर अपने आलोचकों को अपने खिलाफ बोलने
का एक और अवसर दे दिया। इसमें दो राय नहीं कि न्याय की कुर्सी पर बैठा
व्यक्ति अपने विवेकानुसार न्यायसंगत फैसला सुनाने का प्रयास करता है। फैसला
तो किसी एक के पक्ष में ही आएगा और ऐसे में दूसरे का असहमत होना बेशक
स्वाभाविक है।
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