देश के मौजूदा राजनीतिक माहौल से लोगों में काफी निराशा है। आजादी मिलने के बाद के शुरुआती वर्षों में पार्टियों से जो थोड़ी−बहुत आशा थी, समय के साथ वो धीरे−धीरे खत्म हो रही है। अधिकतर पार्टियां आम जनता से कट चुकी हैं। वे अब सत्ता प्राप्ति के लिए जनबल की बजाय धनबल और बाहुबल पर अधिक यकीन करती हैं। उनका प्रबंधन जनसंगठनों की तरह नहीं बल्कि प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों की तरह होता है।
लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करने का दंभ भरने वाली ये पार्टियां कुछ गिने−चुने व्यक्तियों की मिल्कियत हो चुकी हैं। जो जनप्रतिनिधि इन पार्टियों के बैनर तले चुनकर आते हैं, वे वास्तव में जनता के नहीं बल्कि अपनी पार्टी के आकाओं के एजेंट होते हैं। उन्हें अगर जनता और पार्टी में से किसी एक को चुनना पड़ा तो वे निश्चित रूप से पार्टी को ही चुनेंगे। देश की राजनीति में पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक क्षेत्रवाद, जातिवाद और परिवारवाद का बोलबाला है। और ये प्रवृत्ति दिन ब दिन और बलवती हो रही है। लगभग सभी दल साम दाम दंड और भेद से केवल सत्ता हासिल करने में जुटे हुये हैं।
असल में बाजारवाद के चलते पिछले लगभग छह दशकों में पूरी दुनिया में दलीय राजनीति जनोन्मुखी न रह कर महज सत्ताकेन्द्रित हो गयी है। राजनीतिक दल विभिन्न स्वार्थों के प्रतिनिधि या दबाव समूह मात्र रह गए हैं। इस सबके कारण दलीय राजनीति का मूल तकाजा उपेक्षित रह गया। मूल तकाजा यह था कि दल अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के माध्यम से समाज में एक वैश्विक दृष्टि और जनोन्मुखी नीतियों की आधारशिला तैयार करें।
जमीनी हालात यह हैं कि आजादी के 67 वर्षों के बाद भी देश की जनता बिजली, पानी, शिक्षा, सड़क, स्वास्थ्य, शौचालय, नाली−खडंजे जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। विकास के जो कार्य हो भी रहे हैं उनकी रफ्तार इतनी धीमी है कि लोगों का सब्र जवाब देने लगा है।
जनसंख्या जैसी महामारी पर कोई नेता बोलने को तैयार नहीं है। हर पार्टी के शासन का हाल यह है कि पीने के पानी की भारी किल्लत है। कई जगहों पर पानी बहुत मैला, जहरीला आ रहा है। बिजली की उपलब्धता के बारे में बयान कुछ और आते हैं, असलियत कुछ और है। कानून के डर व राज के बावजूद यदि देश के हर हिस्से में, हर पार्टी के शासन में मिलावट धड़ल्ले से जारी है तो इसका एक ही अर्थ है कि सरकारी अमले और सत्तारूढ़ लोगों की मिलीभगत से यह सब हो रहा है। विडम्बना यह है कि पानी और बिजली, श्क्षिा, चिकित्सा सेवाओं के मामले में आम जनता का रवैय्या और सोच भी ठीक नहीं है लेकिन यह घटिया सोच भी नेताओं की ही बनाई हुई है। आर्थिक सुधारों के इस युग में जयललिता व अन्य कई नेता मुफ्त बिजली को और हासिल करने का अधिकार आज भी बनाए हुए हैं। कहने का अर्थ यह है कि देश की कोई भी पार्टी वोट पाने यानी सत्ता चलाने का हक अपनी योग्यता, अपनी सफलताओं और
उपलब्धियों के बूते हासिल नहीं करना चाहती। वे बस अन्य दलों की विफलता या बदनामी के बूते पर सत्ता में आना चाहते हैं। वे भूल जाते हैं कि जिन घटिया मुद्दों पर वे अपने विरोधी दल की सरकार को घरेते हैं वही मुद्दे तब उनके गले की फांस बन जाएंगे जब वे सत्ता में आएंगे। हर सेवा और हर वस्तु मुफ्त या सस्ती पाने का लालच देश को वहां ले आया है जहां उन्हें कुछ भी नहीं मिल रहा। जो जीवन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है वह भी नहीं। उनका जीवन सुखी तो क्या होगा, सुरक्षित तक नहीं । उक्त बातें बेहतर दुनिया परिवार समाजिक संस्था के संस्थापक कुवर दिवाकर प्रताप सिंह जी चर्चा के दौरान कही । आपको बता दे बेहतर दुनिया परिवार सदैव गरीब ,अस हाय लोगो को मदद करती
है साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष आदित्य निर्माण योजना द्वारा परीक्षा कराई जाती है उत्तीर्ण होने पर सम्मानित किया जाता रहा ही ।
अभी हाल ही में बेहतर दुनिया परिवार की टीम कोरोना काल में भोजन वितरण कार्यक्रम लाक डाउन में लगातार समाज की सेवा में लगी रही ।संस्था का एक मात्र संकल्प समाज की सेवा में समर्पित रहना ।उक्त बातें संस्था के महानगर संयोजक अंजनी त्रिपाठी ने कही
,साथ ही 8नवम्बर दोपहर 11बजे टीम के सदस्यों की मीटिंग क्रमश कु वर साहब व अध्यक्ष अंजनी त्रिपाठी सामाजिक हालातो पर चर्चा होगी ।
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