इंसान ठान ले तो बड़ा ओहदा और जिम्मेदारियों का बोझ भी उसे कुछ अलग करने से रोक नहीं सकता। कुछ ऐसा ही किया है बलिया के जिलाधिकारी श्रीहरि प्रताप शाही ने। उन्होंने अपने सरकारी आवास को जीरो बजट की जैविक खेती की पूरी प्रयोगशाला बना दी है। जरूरत का हर खाद्यान्न प्राकृतिक विधि से उगा रहे हैं।
वैश्विक
महामारी कोविड 19 के कारण अच्छे सेहत के लिए सुरक्षित भोजन की तरफ लोगों
का रुझान हुआ है। इसी से प्रेरित जिलाधिकारी विशाल आवास परिसर के वीरान पड़े
रहने वाले लगभग ढाई एकड़ हिस्से में अपने प्रयासों से फसलें लहलहा रहे हैं।
अपनी फसलों के लिए वे उर्वरक और कीटनाशक भी खुद ही तैयार करते हैं। वह भी
पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से। पिछले साल तीन नवम्बर को उन्होंने बलिया में
पदभार संभाला था। उस समय विशाल भूखंड खाली पड़े होने पर उनका किसान मन डोल
उठा और उन्होंने खेती करने की ठान ली।
वे
जब बलिया आए थे तो उनके साथ एक फिजियन नस्ल की गाय थी, जबकि उन्हें
भली-भांति पता था कि जैविक खेती के लिए इस्तेमाल होने वाले उर्वरकों में
अच्छी गुणवत्ता देसी नस्ल की गायों से ही आती है। इसके लिए उन्होंने तीन
देसी नस्ल की गायें मंगवाईं। देसी गायों के लिए उन्नत गौशाला भी बनवाया,
जिसमें गोबर और गोमूत्र इकट्ठा किया जाता है।
नमामि गंगे मिशन से मिली प्रेरणा
किसान
परिवार से ताल्लुक रखने वाले जिलाधिकारी श्रीहरि प्रताप शाही ने बताया कि
मैं दो साल तक (एसएमसीजी) नमामि गंगे के तहत स्टेट मिशन फार क्लीन गंगा में
बतौर एडिशनल प्रोजेक्ट डायरेक्टर सेवा दे चुका हूं।
उत्तर
प्रदेश का अधिकांश भूभाग नदियों से आच्छादित है। खासकर गंगा के किनारे की
भूमि काफी उपजाऊ है। केमिकल युक्त फर्टिलाइजर के इस्तेमाल से न सिर्फ गंगा
नदी का पानी प्रदूषित होता है, बल्कि किनारे के गांवों का भूजल भी प्रभावित
होता है।
रासायनिक खाद की आदी बन जाती है मिट्टी
डीएम
श्रीहरि प्रताप शाही ने जैविक खेती के महत्व के बारे में बताया कि लंबे
समय तक केमिकल के इस्तेमाल से खेतों की मिट्टी केमिकल की आदी बन जाती है।
यह सिर्फ भूमि को ही नहीं, लोगों के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। इसी
को ठीक करने के लिए जैविक खेती अपनाने की आज हर किसी को आवश्यकता है।
डीएम
ने कहा कि यहां आते ही मैंने सहयोगियों से कह दिया था कि उपलब्ध जमीन पर
जैविक खेती होगी। बाहर से एक छटांक भी रासायनिक खाद नहीं आएगी। इसीलिए आवास
में गायों की संख्या बढ़ाई गई। उन्होंने कहा कि एक देसी गाय बीस से तीस एकड़
खेती के लिए पर्याप्त है।
जैविक खेती में केंचुओं की भूमिका अहम
जैविक
खेती के लिए केंचुओं का बहुत महत्व है। हालांकि, अभी ज्यादातर केंचुए
विदेशी हैं, जबकि बर्मी कंपोस्ट के लिए देसी केंचुए ज्यादा कारगर होते हैं।
इससे अच्छी मात्रा में नाइट्रोजन व फास्फोरस बनता है। सुभाष पालेकर की
जीरो बजट खेती के लिए देसी केंचुए व देसी गाय महत्वपूर्ण हैं। देसी गाय के
गोबर व मूत्र से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। साथ ही करोड़ों छोटे
जीवाणु पैदा होते रहते हैं।
ऑर्गेनिक कृषि उत्पादों का ढाई गुना मिलता है मूल्य
जिलाधिकारी
श्रीहरि प्रताप शाही ने बताया कि ऑर्गेनिक उत्पादों के प्रति लोगों में
जागरूकता इतनी बढ़ी है कि रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों से तैयार फसलों की
अपेक्षा ढाई गुना कीमत मिलती है। इसके लिए सर्टिफिकेशन लेना पड़ता है। इससे
किसानों की आय दोगुनी करने में मदद मिलेगी। हालांकि, केमिकल फर्टिलाइजर को
छोड़कर ऑर्गेनिक खेती करने पर पहले साल उत्पादन कम होगा लेकिन इससे घबराना
नहीं चाहिए। दूसरे वर्ष से जैविक खेती में उत्पादन बढ़ने लगता है। तीसरे
वर्ष में यह उत्पादन और भी अधिक बढ़ जाता है।
सामान्य काश्तकारों की क्या है समस्या
डीएम
श्रीहरि प्रताप शाही ने जैविक खेती करने के पीछे की वजहों को भी बताया।
उन्होंने कहा कि जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है, लेकिन इस विधि
से तैयार उत्पादों को बेचने में काश्तकारों को किन समस्याओं से गुजरना पड़ता
है। यह तभी पता चलेगा, जब इसी विधि से खेती की जाएगी। यही कारण है कि
मैंने सरकारी आवास में उपलब्ध खेती योग्य भूमि का इस्तेमाल करने का फैसला
किया, ताकि तैयार उत्पादों को बेचने में किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता
है, इसे करीब से महसूस कर सकूं। जो भी समस्याएं आएंगी, उसे दूर करने का
प्रयास भी किया जाएगा।
कुंओं के पानी को डीएम ने बनाया पीने लायक
डीएम
श्री शाही ने अपने आवास परिसर के एक-एक इंच को जीवंत कर दिया है। यहां तक
कि इस आधुनिक युग में निष्प्रयोज्य पड़े कुंओं को भी उन्होंने पूरी तरह से
उपयोग लायक बना दिया है। डीएम आवास के विशाल परिसर में असंख्य पेड़-पौधे
हैं, जिनसे गिरे खर-पतवार कभी डीएम आवास की सुंदरता को कम करते थे, लेकिन
अब ऐसा नहीं है। डीएम आवास में गिरे एक-एक पत्ते को बीन कर उसका जैविक खाद
में इस्तेमाल किया जाता है।
खूब निकल रहीं सब्जियां
जिलाधिकारी
आवास परिसर में न सिर्फ अनाजों की जैविक विधि से खेती हो रही है, बल्कि
सब्जियां भी खूब उगायी जा रही हैं। फिलहाल डीएम आवास परिसर में लौकी और
नेनुआ खूब निकल रहे हैं। गाजर, बैंगन, गोभी, मिर्चा, बीन्स, मूली, टमाटर,
बोरो आदि सब्जियां भी देखी जा सकती हैं। डीएम श्रीहरि प्रताप शाही का पूरा
परिवार आवास परिसर में बोयी गईं सब्जियां ही खाता है। कभी-कभार ही बाहर से
सब्जियां मंगवानी पड़ती है।
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