प्रख्यात फिल्म निर्देशक बुद्धदेब दासगुप्ता का काफी दिनों तक गुर्दे की
बीमारी से जूझने के बाद बृहस्पतिवार सुबह को दिल का दौरा पड़ने से यहां
स्थित उनके आवास पर निधन हो गया। वह 77 वर्ष के थे।
उनके परिवार में पत्नी और उनकी पहली शादी से दो बेटियां हैं।
बेहतरीन निर्देशक के परिवार एवं मित्रों के प्रति संवेदनाएं
व्यक्त करते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ट्वीट किया,
“प्रख्यात फिल्मकार बुद्धदेव दासगुप्ता के निधन से दुखी हूं। अपने काम के
जरिए उन्होंने सिनेमा की भाषा को अनूठा बना दिया। उनका निधन फिल्म समुदाय
के लिए बड़ा नुकसान है।”
परिवार के सदस्यों ने बताया कि दासगुप्ता की पत्नी सोहिनी ने शहर
में कलिकापुर इलाके में स्थित उनके आवास में सुबह छह बजे देखा कि दासगुप्ता
के शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही है।
उन्होंने बताया कि उन्हें नींद में ही दिल का दौरा पड़ा था।
उनके निधन पर दुख जाहिर करते हुए फिल्मकार गौतम घोष ने कहा,
“बुद्ध दा खराब सेहत के बावजूद फिल्म बना रहे थे, लेख लिख रहे थे और सक्रिय
थे। उन्होंने स्वस्थ न होते हुए भी टोपे और उरोजहाज का निर्देशन किया।
उनका जाना हम सबके लिए बहुत बड़ा नुकसान है।”
अभिनेत्री-निर्देशक अर्पणा सेन ने कहा कि दासगुप्ता की फिल्में ‘‘यथार्थवाद में डूबी’’ रहती थीं।
सेन ने कहा, “मुझे दुख है कि मैं बुद्धदेब दा को श्मशान घाट जाकर अंतिम
विदाई नहीं दे पाउंगी जैसा मैंने मृणाल दा को दी थी। यह दुखी करने वाला है
कि हम इस कोविड वैश्विक महामारी और लॉकडाउन के कारण उनके जैसे क्षमतावान
निर्देशक को उचित सम्मान नहीं दे सकते हैं।”
अभिनेता एवं रंगमंच की हस्ती कौशिक सेन ने कहा कि दासगुप्ता
सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक और मृणाल सेन जैसे फिल्मकारों के स्तर के थे
“जिन्होंने बांग्ला सिनेमा को वैश्विक मंचों तक पहुंचाया।”
सेन ने कहा, “उनपर अकसर आरोप लगता था कि वह ऐसा सिनेमा बनाते हैं
जो बड़े जमसमूह को आसानी से समझ में नहीं आता है। लेकिन वह उस शैली पर टिके
रहे, वह कभी अपने यकीन से भटके नहीं।”
1944 में पुरुलिया में जन्मे, दासगुप्ता ने अपने करियर की शुरुआत
एक कॉलेज में लेक्चरर के तौर पर की थी। बाद में कलकत्ता फिल्म सोसाइटी में
सदस्य के तौर पर नामांकन के बाद वह 1970 के दशक में फिल्म निर्माण में उतर
गए।
उन्होंने अपनी पहली फीचर फिल्म ‘‘दूरात्वा” 1978 में बनाई थी और एक कवि-संगीतकार-निर्देशक के तौर पर अपनी छाप छोड़ी थी।
उससे पहले, उन्होंने लघु फिल्म ‘समायर काचे’ बनाई थी।
उनके निर्देशन में बनीं कुछ प्रसिद्ध फिल्मों में ‘नीम अन्नपूर्णा’,
‘गृहजुद्ध’, ‘बाग बहादुर’, ‘तहादेर कथा’,‘चाराचर’, ‘लाल दर्जा’, ‘उत्तरा’,
‘स्वपनेर दिन’, ‘कालपुरुष’ और ‘जनाला’ शामिल है।
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