भारत और ऑस्ट्रेलिया ने अफगानिस्तान में दीर्घकालिक शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए वहां पर ‘व्यापक एवं समावेशी’ सरकार का आह्वान किया है और तालिबान शासन को मान्यता देने के बारे में अपनी अनिच्छा का स्पष्ट संकेत दिया है।
भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच आरंभिक ‘टू-प्लस-टू’
वार्ता के बाद रविवार को जारी एक संयुक्त वक्तव्य में कहा गया कि दोनों
पक्ष चाहते हैं कि महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा हो, सार्वजनिक
जीवन में उनका पूरा योगदान रहे। इसमें महिलाओं के अधिकारों के हिमायती
लोगों को निशाना बनाकर की जा रही हिंसा पर भी चिंता जताई गई।
दोनों
देशों ने सभी देशों के लिए ‘‘तत्काल, निरंतर, सत्यापन योग्य और
अपरिवर्तनीय’’ कार्रवाई करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया ताकि यह
सुनिश्चित किया जा सके कि उनके नियंत्रण में किसी भी क्षेत्र का इस्तेमाल
आतंकवादी हमलों के लिए नहीं किया जाए और इस तरह के हमलों के अपराधियों को
शीघ्रता से न्याय के कठघरे में लाया जाए।
संयुक्त बयान में कहा गया
है कि ऑस्ट्रेलिया ने 26/11 के मुंबई हमले, पठानकोट और पुलवामा हमलों सहित
भारत में आतंकवादी हमलों की निंदा की और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में नई
दिल्ली के लिए अपना समर्थन दोहराया।
विदेश मंत्री एस जयशंकर और
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्षों मारिस
पायने और पीटर डटन के साथ व्यक्तिगत रूप से बातचीत की।
वार्ता में, मंत्रियों ने वस्तुओं और सेवाओं में द्विपक्षीय
व्यापार को उदार बनाने और गहरा करने के लिए एक अंतरिम समझौते पर दिसंबर तक
शुरुआती घोषणा करने की प्रतिबद्धता को नए सिरे से दोहराया, जो एक व्यापक
आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) के शीघ्र निष्कर्ष का मार्ग प्रशस्त करेगा।
संयुक्त बयान में कहा गया, ‘‘मंत्रियों ने भारत-ऑस्ट्रेलिया दोहरे
कराधान से बचाव समझौते के तहत भारतीय फर्मों की अपतटीय आय के कराधान के
मुद्दे के जल्द समाधान के महत्व को भी रेखांकित किया।’’
बयान में अफगानिस्तान की स्थिति के बारे में मंत्रियों ने गहरी
चिंता व्यक्त की है। इसमें बताया गया, ‘‘मंत्रियों ने तालिबान से विदेशी
नागरिकों और देश छोड़ने के इच्छुक अफगानों के लिए सुरक्षित मार्ग की गारंटी
देने का आह्वान किया। उन्होंने अफगानिस्तान में सत्ता और आधिकारिक पदों पर
काबिज लोगों के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2593 के
अनुसार आतंकवाद विरोधी प्रतिबद्धताओं और मानवाधिकारों का पालन करने की मांग
दोहराई।’’
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