क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने बुधवार को कहा कि पांच साल पहले दिवालिया
संहिता लागू होने के बाद से दिवालिया घोषित होने वाली कंपनियों के सिर्फ
एक-तिहाई वित्तीय दावों की ही वसूली हो पाई है।
क्रिसिल के
मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में सिर्फ 2.5 लाख करोड़ रुपये की ही वसूली
होने से ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) के तहत चलाई जाने वाली
समाधान प्रक्रिया पर अधिक जोर देने की जरूरत है, ताकि इसे ज्यादा कारगर
बनाया जा सके। हालांकि, रेटिंग एजेंसी ने यह माना है कि यह कानून लागू होने
के बाद से हालात कर्जदारों के बजाय ऋणदाताओं के अनुकूल हुए हैं।
क्रिसिल ने बयान में कहा, ‘'आंकड़ों पर करीबी निगाह डालने पर पता चलता है
कि वसूली या रिकवरी की दर और समाधान में लगने वाले समय में अभी सुधार की
काफी गुंजाइश है। यह संहिता को लगातार मजबूत बनाने और समग्र पारिस्थितिकी
को स्थिरता देने के लिहाज से बेहद जरूरी है।’'
रेटिंग एजेंसी का यह बयान इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि बड़े
मूल्य के बकाया राशि वाले मामलों में करीब पांच प्रतिशत की ही वसूली होने
से चिंताएं बढ़ी हैं। दरअसल, शुरुआती दौर में बकाये की वसूली दर कहीं
ज्यादा थी।
क्रिसिल का मानना है कि आईबीसी कानून लागू करने के पीछे
के दो अहम उद्देश्य- रिकवरी को अधिकतम करना और समयबद्ध समाधान को पूरा
करने में नतीजा मिलाजुला ही रहा है। ‘‘सिर्फ कुछ बड़े मामलों में ही ज्यादा
वसूली हो पाई है। अगर हम कर्ज समाधान मूल्य के लिहाज से शीर्ष 15 मामलों
को अलग कर दें तो बाकी 396 मामलों में वसूली दर 18 प्रतिशत रही है।
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Thursday, 4 November 2021

आईबीसी के तहत दावों का सिर्फ एक-तिहाई ही वसूल हुआः क्रिसिल
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