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Tuesday, 30 June 2020

5 किलो चावल, 5 किलो गेहूं और 1 किलो चना, थोथा चना बाजे घना।

कम से कम देश के प्रधानमंत्री को ये समझना चाहिए कि 'प्रधानमंत्री का देश के नाम संबोधन' का मतलब और महत्व  क्या होता है. उन्हें अपने अधिकारियों के हिस्से का मीडिया कवरेज भी नहीं खाना चाहिए. बेहतर होता कि आज की घोषणा केंद्रीय स्तर के अधिकारी करते और पीएम इस बारे में ट्वीट कर देते. 


कल से कहा गया कि पीएम का राष्ट्र के नाम संबोधन होगा. आज 4 बजे तक देश ने अनुमान लगाया कि चीन संकट पर कुछ बोलेंगे, 16 हजार मौतों पर कुछ बोलेंगे, महामारी, बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई, पलायन आदि पर कुछ बोलेंगे. कोई बड़ी घोषणा करेंगे, लेकिन कहीं कुछ नहीं था. खोदा पहाड़ तो निकली चुहिया. 

प्रधानमंत्री को यह समझना चाहिए कि यदि कोई महत्वपूर्ण घोषणा न करनी हो तो उन्हें ऐसा क्षणिक स्टंट नहीं करना चाहिए. जबसे लॉकडाउन हुआ, रघुराम राजन जैसे कई अर्थशास्त्री सलाह दे चुके हैं कि अनाज के भंडार भरे हैं, जनता को मुफ्त राशन मुहैया कराया जाए. लोगों का पेट भरना राष्ट्र-राज्य का दायित्व है.  कुछ-एक महीने अनाज देने की अवधि बढ़ाई तो इसके लिए 'प्रधानमंत्री का देश के नाम संबोधन' नहीं होना चाहिए. 

प्रधानमंत्री पद की गरिमा को बनाए रखना भी प्रधानमंत्री का दायित्व है. हमारे प्रधानमंत्री को नहीं मालूम है कि वे जितना समझ पा रहे हैं, प्रधानमंत्री का पद उससे बड़ी चीज है.

लेखक : कृष्ण कांत

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