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Thursday, 25 June 2020

मुल्ले कंट्रोल में हैं ना, फिर चाहे वो क्यों ना हो जाए जो देश में पिछले 70 सालो में ना हुआ हो।

मुल्ले कंट्रोल में हैं :-

देश में कई जगहों पर डीज़ल का दाम पेट्रोल से मँहगा हो गया है। ऐसा पिछले 70 सालों में कभी नहीं हुआ है। इसे आप हिन्दू हृदय सम्राट नरेन्द्र मोदी सरकार की एक और उपलब्धि कह सकते हैं।

डीज़ल और पेट्रोल के दामों को बाज़ार के हवाले करने का निर्णय जनता पर दोतरफा मार की तरह पड़ रही है। पहले जब कीमतें सरकारी नियंत्रण में थीं तब केवल सरकार ही कीमतों पर निर्णय लेती थी , अब बाज़ार के बहाने तेल कंपनियाँ प्रतिदिन तेल के दाम बढ़ा देती हैं तो सरकार भी मौका देख कर पेट्रोल और डीज़ल पर करों की मात्रा बढ़ा बढ़ा लेती है।

अब तेल की कीमतों पर नियंत्रण दोतरफा हो गया है।

पिछले 7 जून से तेल की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं और इसमें लगभग ₹10 प्रति लीटर की वृद्धी हो चुकी है। कभी ऐसी वृद्धी पर सिलेन्डर और कनस्टर लेकर सड़क पर बैठ जाने वाले तमाम नेता मंत्री बने मस्ती में डूबे हुए हैं। चूँ भी नहीं कर रहे हैं।

चवन्नी अठन्नी की बढ़ोत्तरी पर घर का बजट खराब होने का रोना रोने वाले तथा कथित भगवा गिरोह "अब मुल्ले कंट्रोल में है" का लेमनचूस चूस कर ₹10 रूपये की बढ़ोत्तरी और अब तक के सबसे मँहगे स्तर पर डीज़ल पेट्रेल खरीद कर मस्त हैं।

जब विश्व में क्रूड आयल की कीमतें अब तक के सबसे नीचले स्तर पर होती जा रहीं थीं तब विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बाज़ार द्वारा नियंत्रित तेल की कीमतों के सिद्धांत का बलात्कार कर कर उत्पाद कर पर 14 मार्च 2020 को ₹3 प्रति लीटर और फिर 5 मई 2020 को ₹10 प्रति लीटर बढ़ा दिया और बाजार द्वारा तेल कीमतों के तय होने का यह अघोषित फार्मुला दिया कि बाज़ार केवल उसी स्थीति में तेल की कीमत तय करेगा जब तेल के दाम की बढ़ोत्तरी होगी। तेल के दाम घटने पर वह मुनाफा सरकार लेगी और तेल का दाम बाजार के नियंत्रण से मुक्त हो जाएगा।

तेल पर ₹13 रूपये का उत्पाद कर बढ़ा कर विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जब ₹2 लाख करोड़ कमा चुकी थी तब पड़ोस का एक फटीचर और विफल मुल्क पाकिस्तान तेल की कीमतों में ₹35 प्रति लीटर तक कमी करके अपनी जनता को तेल की कीमतों में कमी का लाभ दे रहा था।

"मुल्ले कंट्रोल में हैं" का लेमनचूस इतना असरकारक है कि देश के बहुसंख्यक समुदाय की 40% जनता इस लेमनचूस के चक्कर में खुद से जुड़ी मूलभूत सुविधा और सवालों को ही भूल गयी है।

5 ट्रिलियन इकोनोमी का फेंका जुमला कलेजे से लगाकर देश का सब्ज़बाग देखने वाले समझ लें कि विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था केवल पेट्रोल और डीज़ल के भरोसे चल रही है और इसकी कुल कीमत का दो तिहाई हिस्सा सरकार की तिजोरी में जाता है।

अर्थात आपके दिए ₹80 के तेल का ₹60 सरकार का है। और इसी के बल पर विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दम भरा जाता है। ध्यान दीजिए कि इंडियन ऑयल के मुताबिक पेट्रोल की बेस प्राइस जहां 22.11 रुपये प्रति लीटर है, वहीं डीजल की बेस प्राइस 22.93 रुपये प्रति लीटर हो गयी है पर बेचा जा रहा है ₹80 प्रति लीटर।

जबकि हकीकत यह है कि यह मज़बूत अर्थव्यवस्था देश के कुछ लाख लोगों को 2 महीने मुफ्त में खाना नहीं खिला सकती , इन्हीं कुछ लाख लोगों को इनके घरों तक सुरक्षित नहीं भेज सकती। बल्कि देश में आपदा पड़ने पर देशवासियों के सामने ही कटोरा लेकर खड़ी हो जाती है।

डीज़ल का दाम बढ़ना देश के अर्थतंत्र पर सीधी चोट है और इससे देश में मँहगाई बढ़ेगी। क्युँकि पेट्रोल जहाँ केवल कारों और मोटरसाइकिल जैसे वाहनों में ही प्रयोग किया जाता है वहीं डीज़ल कृषि समेत माल ढुलाई के लिए उपयोग में लाए जाने वाले तमाम साधनों में प्रयोग किया जाता है।

दरअसल डीज़ल के दाम को पेट्रोल के दाम के बराबर लाने की सरकार और तेल कंपनियों की सोच डीज़ल की कारों के कारण है। जबकि इसका एक दूसरा पक्ष यह है कि एक तो कारों में कुल डीज़ल की खपत का 5% भी प्रयोग नहीं होता और दूसरा यह कि डीज़ल की कारों का मूल्य पहले ही पेट्रोल की उसी फीचर की कारों के मुकाबले ₹2-2 लाख अधिक होता है।

इसी बहाने डीज़ल पर कर लाद लाद कर उसे पेट्रोल की कीमतों के बराबर किया जा रहा है।

इसका असर देखिए , अहमदाबाद से आने वाला ठोस सामान जो पहले ₹8 प्रति किलो आता था वह अब ₹11 प्रति किलो हो चुका है तो दिल्ली से ₹5 प्रति किलो आने वाला ठोस सामान ₹7 प्रति किलो हो चुका है।

सब्ज़ी , और कृषि कार्य में सिचाई और कटाई का खर्च भी बढ़ेगा , और चावल की जिस खेती पर प्रति बीघा ₹7500 खर्च आता था वह अब बढ़ कर ₹8500 तक जा चुका है। मँहगाई बढ़ रही है , डेलिवरी खर्च के कारण सामानों की कीमतों में वृद्धी जारी है।

पर सरकार को इससे मतलब नहीं , उसे पता है कि देश के 40% बहुसंख्यक "मुल्ले कंट्रोल में हैं" का लेमनचूस चूस कर मस्त हैं। जिस दिन इस लेमनचूस का असर खत्म होगा उसी दिन पोटली से एक दूसरा और असरकारक लेमनचूस इनको थमा दिया जाएगा।

जब तक खूँटा शरीर को फाड़ ना दे यह लेमनचूस चूस कर भगवा गमछा लपेटे मस्ती में रहेंगे। सरकार से यह माँग करने की इनकी औकात नहीं कि मार्च से अब तक जो ₹13 का उत्पाद कर बढ़ाया था वही कम कर दो।

चूसते रहो लेमनचूस और आनंद लो कि तेल की कीमत पर कंट्रोल हो ना हो मुल्ले तो कंट्रोल में हैं।

लेखक : मो जाहिद

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