कुशीनगर,
24 जून (हि.स.)। केंद्रीय कैबिनेट से अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट की मंजूरी
मिलने के बाद कुशीनगर एयरपोर्ट चर्चा में आ गया है। यह एयरपोर्ट न केवल
पर्यटन की दृष्टि से बल्कि सामरिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्व का है। यह
भारत में नेपाल व चीन के सबसे नजदीक का हवाईअड्डा है। वर्तमान में चीन से
तनातनी के बीच इसकी प्रासंगिकता और बढ़ गई है।
इसकी
स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के समय हुई थी जिसका विस्तार केंद्र व प्रदेश
की सरकार ने संयुक्त रूप से अन्तर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा के रूप में किया
है। विस्तार के लिए वर्ष 2010 में मायावती के नेतृत्व वाली सरकार ने
अतिरिक्त भूमि अधिग्रहण का निर्णय किया और किसानों की भूमि अधिग्रहित किया।
वर्ष 2015 में अखिलेश सरकार ने एयरपोर्ट बनाने का किया फैसला और 200 करोड़
की धनराशि निर्गत की। प्रदेश सरकार 3.90 अरब रुपया खर्च कर चुकी है।
नागरिक
उड्डयन विभाग ने 13 गांवों की 589.35 एकड़ भूमि भारतीय विमान पत्तन
प्राधिकरण को हस्तान्तरित कर चुका है। एयरपोर्ट केंद्र सरकार की उड़ान-3
योजना में शामिल है। प्रधिकरण ने रूट व एयरलाइन चयन की प्रक्रिया पूरी कर
ली है। लखनऊ-कुशीनगर-बोधगया रुट पर विमानों के संचलन के लिए को टर्बो
एविएशन से करार हुआ है। राइट्स इंडिया ने चाहरदीवारी, रन वे, एप्रन, एटीसी
बिल्डिंग, लाइटिंग, फायर बिग्रेड बिल्डिंग का निर्माण का कार्य पूर्ण कर
दिया है। एयरपोर्ट थाना, बिजली घर, गार्ड रूम, पानी की टंकी, एयरपोर्ट
संपर्क मार्ग, ट्रैफिक कंट्रोल, फोरलेन पहुंच मार्ग का कार्य तेजी पर है।
लब्बोलुआब यदि सरकार ने पूर्ण तेजी दिखा दी अक्टूबर से शुरू होने वाले नए
पर्यटन सीजन में उड़ान शुरू हो सकती है।
डॉ.
डीएस तिवारी पूर्व प्राचार्य बुद्ध पीजी कालेज कुशीनगर का कहना है कि इस
एयरपोर्ट की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश शासन ने सामरिक
महत्व की दृष्टि से की थी। आपदा या युद्ध के समय इसकी महत्ता बढ़ जाती है।
चीन भारत के मध्य तनाव चल रहा है। ऐसे समय में यह और महत्व का हो गया है।
सबसे बड़ा कारण कि यह चीन व नेपाल के नजदीक है।
एजेंसी
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