खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने अपने प्रकार की पहली पहल के रूप में, अपनी परिसंपत्तियों के मौद्रिकरण को बढ़ावा देने के लिए चंदन और बांस के वृक्षारोपण की शुरुआत की है, जिनका अभी तक दोहन तक नहीं गया है लेकिन अत्यधिक लाभदायक उद्यम है। चंदन और बांस के व्यावसायिक वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के लिए, केवीआईसी ने 262 एकड़ जमीन में फैले हुए अपने नासिक प्रशिक्षण केंद्र में चंदन और बांस के 500 पौधे लगाने की मुहिम की शुरुआत कर दी है।
केंद्रीय एमएसएमई मंत्री, श्री नितिन गडकरी ने केवीआईसी के पहल की सराहना की है।
केवीआईसी द्वारा चंदन के पौधों की खरीद एमएसएमई मंत्रालय की इकाई, फ्रेगरेंस एंड फ्लेवर डेवलपमेंट सेंटर (एफएफडीसी), कन्नौज, उत्तर प्रदेश से और बांस के पौधों की खरीद असम से की गई है। केवीआईसी के अध्यक्ष, श्री विनय कुमार सक्सेना ने कल वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से वृक्षारोपण समारोह का शुभारंभ किया।
केवीआईसी के लिए परिसंपत्तियों का निर्माण करने के उद्देश्य के साथ, चंदन के वृक्षारोपण की योजना भी बनाई गई है क्योंकि अगले 10 से 15 वर्षों में इसके माध्यम से 50 करोड़ से 60 करोड़ रुपये के बीच आने का अनुमान है। चंदन का एक पेड़ 10 से 15 साल में परिपक्व हो जाता है और वर्तमान दर के अनुसार, 10 लाख रुपये से 12 लाख रुपये तक बिकता है।
इसी प्रकार, असम से लाई गई अगरबत्ती की लकड़ी बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाले बांस की एक विशेष किस्म, बम्बुसा तुलदा को महाराष्ट्र में लगाया गया है, जिसका उद्देश्य स्थानीय अगरबत्ती उद्योग को समर्थन प्रदान करना और प्रशिक्षण केंद्रों के लिए नियमित आय उत्पन्न करना है।
एक बांस का पेड़ तीसरे वर्ष में कटाई के योग्य हो जाता है। एक परिपक्व बांस का लट्ठ, जिसका वजन लगभग 25 किलो होता है, औसतन 5 रुपये प्रति किलोग्राम के औसत दर से बिकता है। इस दर पर बांस के एक परिपक्व लठ्ठ की कीमत लगभग 125 रुपये होती है। बांस के पौधे में अद्वितीय गुण होता है। प्रत्येक बांस का पौधा, तीसरे वर्ष के बाद, न्यूनतम 5 लठ्ठ का उत्पादन करता है और उसके बाद, बांस के लठ्ठ का उत्पादन प्रत्येक वर्ष दोगुना हो जाता है। इसका मतलब यह है कि 500 बांस के पौधों से तीसरे वर्ष में कम से कम 2,500 बांस के लट्ठ प्राप्त होंगे और इससे लगभग 3.25 लाख रुपये की अतिरिक्त आय होगी जो प्रत्येक वर्ष दोगुनी रूप से बढ़ेगी।
इसके अलावा, मात्रा के हिसाब से, 2,500 बांस के लठ्ठ का वजन लगभग 65 मीट्रिक टन होगा, जिसका उपयोग अगरबत्ती बनाने के लिए किया जाएगा और इस प्रकार से बड़े पैमाने पर स्थानीय रोजगार का निर्माण होगा।
पिछले कुछ महीनों में केवीआईसी ने भारत के विभिन्न हिस्सों में, बम्बुसा तुलदा के लगभग 2,500 पेड़ लगाए हैं। अगरबत्ती निर्माताओं के लिए सही कीमत पर कच्चे माल की स्थानीय उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए नासिक में नवीनतम वृक्षारोपण के अलावा दिल्ली, वाराणसी और कन्नौज जैसे शहरों में बम्बुसा तुलदा के 500 पौधे लगाए गए हैं।
केवीआईसी के अध्यक्ष, श्री विनय कुमार सक्सेना ने कहा कि “खाली जमीन पर चंदन और बांस के पेड़ों को लगा कर परिसंपत्तियों के मौद्रिकरण का लक्ष्य है। इसी समय, यह चंदन की विशाल वैश्विक मांग को पूरा करके दोहरे उद्देश्य की पूर्ति करेगा, जबकि बांस का वृक्षारोपण स्थानीय अगरबत्ती निर्माताओं को समर्थन प्रदान करेगा, केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में भारत में अगरबत्ती निर्माण ‘आत्मानिर्भर’ बनाने के लिए किए गए निर्णय के आलोक में।” सक्सेना ने कहा कि, "हम पूरे देश में केवीआईसी की और ज्यादा परिसंपत्तियों की पहचान कर रहे हैं, जहां पर इस प्रकार के वृक्षारोपण शुरू किए जा सकते हैं," उन्होंने यह भी कहा कि अगर किसानों के द्वारा अपने खेतों में सिर्फ दो चंदन का पेड़ लगाना शुरू कर दिया जाता है, तो वे किसी भी वित्तीय स्थिति का सामना करने के लिए वे आर्थिक रूप से पूरी तरह आत्म-निर्भर बन जाएंगे।
चंदन के पेड़ों का वृक्षारोपण करने की निर्यात बाजार में भी उच्च क्षमता है। चंदन और इसके तेल की चीन, जापान, ताइवान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों में भारी मांग है। हालांकि, चंदन की आपूर्ति बहुत कम है और इसलिए भारत के लिए चंदन के वृक्षारोपण को बढ़ावा देने और चंदन के उत्पादन में एक वैश्विक लीडर बनने का एक सुनहरा अवसर है।
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