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Friday, 26 June 2020

सेटेलाइट के ज़माने में भी झूठ बोलने की हिम्मत देश के प्रधानमंत्री में है।

गोएबल्स और हिटलर :-

सेटेलाइट के ज़माने में भी झूठ बोलने की हिम्मत देश के प्रधानमंत्री में है। सेटेलाईट से आते चित्र बता रहे हैं कि गलवान घाटी पर चीन का कब्ज़ा हो चुका है और वह वहाँ अपने सैन्य साजो सामान इकट्ठा कर चुका है।

यही नहीं वह गलवान घाटी के बाद लद्दाख के शेष हिस्सों विशेषकर दौलत बैग ओल्डी एयरबेस में भी भारतीय सेना की गस्त को चीन रोक रहा है।


और देश का प्रधानमंत्री सरेआम आन एयर झूठ बोल रहा है कि "ना तो वह हमारी सीमा में घुसे हैं ना हमारी किसी पोस्ट पर कब्ज़ा किए हैं"।

यह ब्लंडर है कि सेटेलाइट के इतने स्पष्ट चित्रों के बावजूद देश का प्रधानमंत्री झूठ बोल रहा है। दरअसल झूठ ही इनका "रक्त-चरित्र" है। इनका इतिहास से वर्तमान देख लीजिए , झूठ के सिवा कुछ नहीं मिलेगा। इनका कार्य झूठ को ही सच से अधिक पवित्र करने का है।

हिटलर का एक मंत्री था , डॉ जोसेफ गोएबल्स , यह 1933 से 1945 तक नाजी जर्मनी का मिनिस्टर ऑफ प्रोपेगेंडा था।

गोएबल्स ने ही आधुनिक विश्व में झूठ को मान्यता दिलाने के लिए एक सूत्र दिया कि "एक झूठ को अगर कई बार दोहराया जाए तो वह सच बन जाता है" 

गोएबल्स बेहद जोशीला भाषण देता था , और उसके भाषण में सिर्फ़ झूठ ही होता था। ऐसा कहा जाता है कि गोएबल्स ही था जिसने लोगों को झूठ बोलना सिखाया।

1933 में गोएबल्स ने कहा था कि "रेडियो (तब सिर्फ रेडियो ही संचार माध्यम था) सिर्फ 19वीं ही नहीं बल्कि 20वीं सदी में भी सबसे असरदार माध्यम रहेगा"। 

वह रेडियो को 'आठवीं महान शक्ति' मानता था. उसने जर्मन सरकार से रेडियो के उपकरणों के उत्पादन में आर्थिक छूट यानि सब्सिडी भी दिलवाई ताकि सस्ते रेडियो बन सकें। 

रेडियो और उसके स्टेशन दोनों ज्यादा क्षमता वाले बनाए जाते थे ताकि जर्मनी के साथ ही ऑस्ट्रिया के स्टेशन तक भी अपना प्रोपेगेंडा पहुंचाया जा सके।

वह मानता था कि विचार और जनभावना को मोड़ने का सबसे सशक्त माध्यम अख़बार होता है। नाज़ी अख़बारों में सबसे कुख्यात था Der Sturmer (The Attacker या हमलावर)। भारत में आप देनिक जागरण , दैनिक भाष्कर , अमर उजाला , दैनिक हिन्दुस्तान और तमाम इलेक्ट्रानिक मीडिया की तरह।

इसे जूलियस स्ट्रैचर छापता था , जिसे आप आज के भारत के अर्नव गोस्वामी , सुधीर चौधरी , अमीष देवगन , दीपक चौरसिया , अंजना ओम कश्यप , राहुल कँवल , श्वेता सिंह जैसों को मान सकते हैं।

जूलियस स्ट्रैचर के अश्लील लेखन, तस्वीरों, भेदभाव भरे लेखों की वजह से हिटलर खुद भी इसकी बड़ी तारीफ़ करता था, कहता था ये सीधा 'सड़क के आदमी' से बात करता है। वो खुद भी इसे रोज पूरा पढ़ने का दावा करता था।

आज के भारत के प्रधानमंत्री भी अर्नव गोस्वामी की तारीफ करके कह चुके हैं की जब भी मौका मिलता है वह अर्नव को सुनते हैं।

जर्मन घरों के अन्दर तक घुसने के लिए नाज़ी पार्टी ने 1933 में Department of Film भी बना दिया था।इसका एकमात्र मकसद 'जर्मन लोगों को समाजवादी राष्ट्रवाद का सन्देश' देना था।

गोएबल्स ने शुरू में शहरों में फिल्म दिखाना शुरू किया, फिर धीरे-धीरे नाज़ी सिनेमा बनाना भी शुरू किया। इसी प्रयास का नतीजा थी The Wandering Jew. जो की 1940 में आई थी और यहूदी लोगों को बुरा दिखाती थी।

आधुनिक भारत में वैसा ही , बाजीराव मस्तानी , पद्मावत , केसरी , पानीपत , ताना जी , ऊरी इत्यादि सैकड़ों फिल्में मुगलों और मुसलमानों को खलनायक बताकर रिलीज की गयीं।

विरोधियों के खिलाफ दुष्प्रचार के तरीके का भी गोएबल्स ने प्रयोग किया और अपने विरोधी को राक्षस बताने जैसी तकनीकों को उसने खूब प्रचारित-प्रसारित करवाया।

अब आप खुद देखिए कि आधुनिक भारत में देवी देवताओं के नये नेता के रूप में देश के प्रधानमंत्री को प्रस्तुत कर ही दिया गया है। अर्थात विपक्षी पार्टी के नेता राक्षस हैं यह अप्रत्यक्ष रूप से बता ही दिया गया है।

मिथकीय कहानियां, लोक कथाएं और धार्मिक मान्यताएॅ गोएबल्स के भाषणों का मुख्य हिस्सा हुआ करते थे। नाज़ी विचारधारा में मिथक और लोककथाओं का बड़ा महत्व था। नाज़ी पार्टी की धार्मिक मान्यताएं स्पष्ट नहीं थीं लेकिन गोएब्बेल्स इसका महत्व अच्छे से जानता था। 

अक्सर ही जर्मन प्रतीक चित्रों की मदद से प्रचार करते थे। इनका मकसद प्राचीन जर्मन सभ्यता को लोगों के दिमाग में महान बनाना था।

आधुनिक भारत में भी मिधकीय कहानियों से आप परिचित ही होंगे। बचपन में तालाब से मगरमच्छ पकड़ लाना , बचपन में ट्रेन में चाय बेचना , 30 साल तक भीख माँग कर जीवन यापन करना , नाले के गैस से चाय बनाना इत्यादि इत्यादी।

बाकी भारत में तिकोना झंडा और अखंड भारत का चूरन चटाते आप देख ही रहे होंगे।

नाज़ियों के पास जो प्रचार के तरीके थे उनमे से सबसे ख़ास था "फुहरर" यानि खुद "हिटलर"। एक करिश्माई व्यक्तित्व और प्रखर वक्ता के तौर पर हिटलर अपने तर्क को सबसे आसान भाषा में लोगों तक पहुंचा सकता था।

कठिन से कठिन मुद्दों पर वो आम बोल-चाल की भाषा में बात करता था। वह भावनाओं की बात करता था। छोटी से छोटी दुर्घटना को बड़ा करके दिखाना। बरसों पुराने जख्मों को ताज़ा कर देना उसके बाएं हाथ का खेल था। बाकि जो कमी होती थी, उसे गोएबल्स का प्रोपेगेंडा पूरा कर देता था।

आप इस कला को पिछले 7-8 साल से अपने भारत में भी देख ही रहे हैं।

गोएबल्स ही हिटलर का एक अंश था। बिना गोएबल्स के हिटलर आधा था। गोएबल्स मतलब झूठ का देवता।

द्वितीय विश्व युद्ध हिटलर के सनक का नतीजा था , साल 1945 की शुरुआत से ही हिटलर की दूसरे विश्व युद्ध पर पकड़ कमजोर पड़ने लगी थी। 

मित्र देशों की सेनाएं बर्लिन की तरफ तेजी से बढ़ रही थीं और जर्मन अपना इलाका लगातार खोते जा रहे थे.। 20 अप्रैल को हिटलर के जन्मदिन था। और इस वक्त तक सोवियत टैंक जर्मनी की राजधानी बर्लिन तक पहुंच चुके थे।

हिटलर इससे डरा हुआ था और उसने 30 अप्रैल को अपने बंकर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी।

इसके बाद मित्र देशों की सेना की गिरफ्त में आने और मार डाले जाने के डर से डॉ जोसेफ गोएबल्स ने भी ऐसा ही किया। उसने आत्महत्या से पहले अपनी पत्नी मैग्डा और 6 बच्चों को भी मार डाला।

आधुनिक भारत के मित्र देश भी दुश्मनी करने पर उतारू हैं , मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा पाए चीन और फिर नेपाल के बाद भूटान भी अब भारत को आँखे तरेर रहा है। पर विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेना हमारे देश की सेना है वह इन पिद्दियों का जवाब देना अच्छी तरह से जानती है।

पर झूठ का असर देखिए कि कल तक "शाब जी" , कह कर हमारे गली मोहल्लों में सीटी बजा कर "जागते रहो" का ऐलान करने वाला बहादुर , और सर्दी शुरु होते ही देश के नगर निगमों द्वारा सरकारी स्तर पर आवंटित ज़मीनों पर गरम कपड़े बेचकर जीवन चलाने वाले भुटानी विश्व की पाँचवी अर्थव्यवस्था को आँखें दिखा रहे हैं।

तो समझ लीजिए कि "समस्या सीमा पर नहीं दिल्ली में है"। हर झूठ का हश्र वही होता है जो हिटलर का हुआ और उसके झूठ के देवता गोएबल्स का हुआ।

खैर मोदी जी स्वस्थ रहें ईश्वर मोदी जी को लंबी उम्र दे।

व्यंग : मो जाहिद

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