मज़बूत और सक्षम नेतृत्व तब सिद्ध होता है जब परिस्थियाँ विपरीत हों।
खुले चौरस मैदान में तो कोई भी कार ड्राईव कर सकता है पर बेहतरीन ड्राईवर वह होता है जो सकरी , पहाड़ी सड़कों पर कार को सुरक्षित मंज़िल तक पहुँचा दे।
जब किसी के घर में बेटी की शादी होती है और दामाद ससुराल आता है तो उसे पूरे खानदान में दावतें मिलती हैं , उसे देखने और मिलने लोग आते हैं , उसका सम्मान करते हैं। पर यह सम्मान उसके कारण नहीं बल्कि उस घर और खानदान के कारण होता है जिस घर की बेटी होती है।
यही भारतीय सभ्यता और परंपरा भी है तो दुनिया में भी इसी तरह का प्रचलन है।
मोदी जी प्रधानमंत्री बनने के बाद अगले 3 साल तक उसी दामाद की तरह पूरी दुनिया में अपनी आवभगत कराते रहे और जो मान सम्मान उनको भारत का मुखिया होने के कारण मिलता रहा उसे वह और उनके भक्त मोदी जी का पराक्रम समझते रहे।
यह वैसा ही था जैसे दामाद ससुराल के खानदान में मिली इज्जत को अपना पराक्रम समझ ले।
तीन साल बाद ससुराल में दामाद की स्थीति "घर की मुर्गी साग बराबर" हो जाती है तो पिछले तीन साल से मोदी जी भी शेष देशों के लिए वही हो गये। अब ना वह हर रोज के विदेशी दौरे ना भाषण और ना ईवेन्ट।
कोरोना काल के कठिन समय में उनका नेतृत्व भी केवल भाषण तक सीमित रह गया।
देश की अर्थव्यवस्था इस कठिन समय में बर्बाद हो गयी और एक आँकड़े के अनुसार 14 करोड़ लोग बेरोज़गार हो गये।
यह ठीक वैसा ही है जैसे मैदान में फर्राटे से कार चलाने वाला ड्राईवर 20000 फिट उँची सकरी पहाड़ी पर पहुँचने के प्रयास में कार नीचे खाई में गिरा देता है और खुद टहनी पकड़ कर लटका रह जाता है। और उसकी ट्रेवेल एजेन्सी के लोग उस कार मे बैठे लोगों के परिजनों को बस संतावना देते रहते हैं कि सब ठीक हो जाएगा।
आज की स्थीति यही है।
लेखक: उपरोक्त लेख मो जाहिद का लिखा हुआ व उनकी सहमति से फेसबुक से लिया गया है। इस लेख के समस्त मत उनके निजी है।
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