अब जब भाजपा की केन्द्र सरकार ने हिमांचल प्रदेश में बंदरों को मारने की अनुमति दे दी तो मुझे शिमला स्थीति जाखू हनुमान मंदिर के बंदर बहुत याद आ रहे हैं।
हम बहुत ऊँची चढ़ाई चढ़ कर जाखू मंदिर पहुँचे तो रास्ते में जगह जगह बोर्ड पर लिखा मिला कि "बंदरों से सावधान"।
बोर्ड देखकर लगा कि शायद बंदर काट सकते हैं , अकेले तो मैं निपट सकता था पर चुँकि परिवार भी साथ था तो मैंने वहीं के एक फुटपाथ के दुकानदार से पूछा कि यहाँ इतने बंदर हैं , क्या यह काट भी सकते हैं ?
दुकानदार बोला कि नहीं , यह काटते नहीं हैं , बहुत शरारती हैं , बस अपना मोबाईल पर्स इत्यादि संभाल कर रखिएगा , यह लेकर भाग सकते हैं। मैंने अपना मोबाईल पैंट की जेब में रखा और परिवार को पर्स संभाल कर चलने को कहा।
जब हम आगे बढ़े और मंदिर के मुख्य गेट वाले प्रांगड़ में जैसे ही पहुँचे , एक छोटा सा बंदर दौड़ता हुआ आया और पीछे से मेरे कंधे पर आकर बैठ गया।
मैं घबरा गया , मुझे देखकर लोग हँसने लगे , फिर वह बंदर मेरे शर्ट की जेब झाँकने लगा , जिसमें कार की चाभी थी। वह कार की चाभी लेकर भागा और कुछ दूर जाकर बैठ गया और मुझे देखने लगा।
अब हम बहुत परेशान , तभी मंदिर से निकले एक बाबा हमें देखकर बोले कि परेशान मत हो , वहाँ से ₹10 का लाई चना खरीद कर उस पेड़ के नीचे रख दो , वह आकर ले जाएगा और आपका सामान छोड़ जाएगा।
हमने ऐसा ही किया , और उस बंदर ने भी वही किया , ईमानदार था। लाई चना खाया और चाभी छोड़ गया।
मुझे और मेरे परिवार को उसकी यह अदा बेहद पसंद आई , हमने फिर कई पैकेट लाई चना खरीदा और उसकी ओर फेंक दिया।
बंदरों को मारने की अनुमति के बाद जाखू मंदिर के वह बंदर आज मुझे याद आ रहे हैं।
केंद्र सरकार की अधिसूचना के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में नुकसान पहुंचा रहे इन बंदरों को मारा जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जिन 10 जिलों में इन बंदरों की मारने की अनुमति मिली है वहां इनकी संख्या मात्र 37077 हजार हैं। अर्थात एवरेज में मात्र 3700 बंदर प्रति जिले।
आँकड़ों पर जाएँ तो , चंबा में 4387 , विलासपुर में 7992 , ऊना में 10123 , शिमला में 4144 , मंडी में 3921 , कुल्लू में 2322 , हमीरपुर में 3364 और किन्नौर में मात्र 824 बंदर हैं।
इन बंदरों से यदि बहुत नुकसान भी हो तो इनको मारने का आदेश ना देकर संरक्षण किया जा सकता है , "गोशाला" की तर्ज़ पर बंदरशाला भी बनाई जा सकती है। बंदरों के लिए बाड़े बनाए जा सकते हैं 50 फिट × 50 फिट के 25 बाड़े में 5000 बंदर रखे जा सकते हैं।
पर बंदर तो लाभ देते नहीं ? उनकी पूजा तो सिर्फ लाभ पाने के लिए होगी , हानि करने पर इन्हीं पूजने वाले ही मार देंगे। क्युँकि मनुष्य बहुत स्वार्थी होता है , गाय से उसे दूध मिलता है इसलिए उसके लिए सारा प्रपंच और बंदरों से उसे हानि होती है तो उसे मारने का आदेश। गाय तो 33 कोटि देवताओं का घर मात्र है पर बंदर तो साक्षात हनुमान जी के वंशज हैं , उनका रूप हैं।
उनके लिए गाय जैसा "प्रोटोकाल" क्युँ नहीं ?
वह भी हिन्दूवादी पार्टी की सरकारों में , हनुमान जी के वंशजों को मारने का आदेश बेहद निंदनीय है। उनको तो मुसलमान भी नहीं मारता , ना खाता है।
जो मुसलमान माँसाहार और पशु हत्या के कारण सदैव पशु प्रेमियों के आक्रमण पर रहता है वह भी बंदरों को नहीं मारता और ना उनका माँस खाता है। फिर तुम अपने इस श्रद्धेय मानव समान पशु को क्युँ मार रहे हो ?
हिमाचल प्रदेश के रीसस मकाक प्रजाति के बंदरों को 10 जिलों में वर्मिन (पीड़क जंतु) घोषित किया गया है। इस घोषणा के बाद अब किसान या कोई भी अपनी फसलों या जानमाल की रक्षा करने के लिए बंदरों को मार सकता है।
ध्यान दीजिए कि "रीसस मकाक" बंदर वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची 2 के तहत संरक्षित प्रजाति हैं लेकिन सरकार ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए इन्हें हिंसक जंतु घोषित किया और एक साल तक इनके शिकार की अनुमति दे दी गयी है।
मासूम बंदर हिंसक हो गया ? उनको मार दो ? और जो इंसान हिंसक हुए उनको पद दे दो ? सांसद बना दो , मंत्री बना दो , देश की सत्ता उनके हवाले कर दो। यही मानव समाज का सभ्य नियम है।
दरअसल आज के भारत में सत्ताधारी जो कहें वही धर्म है। वह जो कहें वही ब्रम्ह वाक्य है जिसका ना कोई विरोध कर सकता है ना आलोचना।
काश कि हिमांचल प्रदेश में काँग्रेस की सरकार होती तो इन बंदरों को मारने के फैसले पर भाजपा के तिव्र विरोध और हिन्दू धर्म के खतरे के आह्वाहन पर ऐसे फैसले वापस ले लिए जाते और जाखू समेत तमाम बंदरों की जान बच जाती।
हद है , कितने स्वार्थी बनोगे मानव तुम ?
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