एक ऐसे समाज में जहाँ 100 वर्गगज के एक मकान में एक छोटा सा कमरा देने से पहले लोग कास्ट पूछते हों। एक ऐसे देश में जहां नौकरी देते समय सरनेमों को प्रिविलेज दिया जाता हो।
एक ऐसे लोकतंत्र में जहां केस दर्ज करने से लेकर धाराएं लगाने तक में जाति का ध्यान रखा जाता हो तो वहां एक पत्रकार जाति के अर्थों को दिखाना चाहता है तो इसबात पर कोई आपत्ति कैसे हो सकती है? शतुरमुर्ग की तरह जमीन में सर घुसाकर मानवीय संकटों से मुक्त नहीं हुआ जा सकता.
इस देश में घरों और बस्तियों की संरचनाएं तक जाति के आधार पर रखी गई हैं कभी सोचा? कथित निम्न जातियों के घर गांव के कौनें में ही क्यों मिलते हैं?
कभी सोचा है जब अपनी फसल कटवाने के मजदूर चाहिए होते हैं तो आप किस मोहल्ले में जाते हैं? कभी सोचा है किसी पशु के मरने के बाद आप किस जाति के लोगों के पास जाते हैं?
किस जाति की औरत हाथ में लोहे की टीन की दो परते लेकर आपकी गलियों में सफाई के लिए आती हैं? आपको नहीं पता? क्या आपने कभी पूछा? नहीं न...!
तो इन्हीं सवालों का जबाव आपको समाज के सवालों में मिल जाता है कि "कौन जात हो"
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