पीएम केयर्स पर अगर आप ..... मानते हैं - तो मुझे कुछ नहीं कहना
1. अगर आप मानते हैं कि लोग कोविड के लिए दान देने के लिए तैयार थे इसलिए प्रधानमंत्री को उसे स्वयं लपक लेना चाहिए था - तो मुझे कुछ नहीं कहना।
2. अगर आप मानते हैं कि 3100 करोड़ के वेंटीलेटर का ऑर्डर कर देना (किसे, कैसे डिलीवरी कब होगी जाने बिना) और (अनुसंधान के लिए पैसे देना) पर्याप्त है - तो मुझे कुछ नहीं कहना।
3. अगर आप मानते हैं कि कोविड केयर के लिए बाकी सब ठीक चल रहा है और कुछ करने (पैसे खर्चने का) कोई काम नहीं है - तो मुझे कुछ नहीं कहना।
4. अगर आप मानते हैं कि ट्रस्ट के लिए नियुक्त किए गए कर्मचारी / सेक्रेट्री / पीआरओ ट्रस्टी मंत्रियों से ऊपर हो जाएंगे, किसी नियुक्ति की कोई जरूरत नहीं है - तो मुझे कुछ नहीं कहना है।
5. अगर आप मानते हैं कि (आपके कहे मुताबिक पीएमएनआरएफ के पूर्व ऑडिटर) रामेश्वर ठाकुर को राज्यपाल बनाना गलत था और इसलिए पार्टी / संघ के करीबी की सीए फर्म को प्रधानमंत्री राहत कोष और पीएम केयर्स दोनों का ऑडिटर बना देना ठीक है - तो मुझे कुछ नहीं कहना।
6. अगर आप मानते हैं कि पीएम केयर्स सरकारी नहीं है और / इसलिए आरटीआई के दायरे से बाहर रखना ठीक है - तो मुझे कुछ नहीं कहना है।
7. अगर आप मानते हैं प्रधानमंत्री के विवेक से खर्च करने वाला प्रधानमंत्री राहत कोष और प्रधानमंत्री के मातहत मंत्रियों या ट्रस्टियों के निर्णय से चलने वाला पीएम केयर्स एक ही है - तो मुझे कुछ नहीं कहना है।
8. अगर आप मानते हैं कि पैसे इकट्ठा करने के लिए ट्रस्ट बनाना ठीक है, उसमें मंत्रियों को रखना ठीक है और बाकी ट्रस्टियों का चुनाव भी ठीक है और ट्रस्ट डीड सार्वजनिक नहीं करना ठीक है - तो मुझे कुछ नहीं कहना।
9. अगर आपको लगता है कि ट्रस्ट के ट्रस्टियों की चलेगी और उनके मन से कुछ हो पाएगा, उनकी राय ली जाएगी और उसका महत्व होगा - तो मुझे कुछ नहीं कहना है।
10 . अगर आपको लगता है कि पीएम केयर्स में कितने पैसे हैं, आगे क्या योजना है और किसी की लाश अस्पताल वाला बिल का भुगतान न होने पर न दे तो पीएम केयर्स से सहायता मांग सकते हैं कि नहीं, जैसे सवाल बेमतलब हैं - तो मुझे कुछ नहीं कहना।
11. अगर आप मानते हैं कि अरबों रुपए का ऐसा ट्रस्ट (जनता की सेवा के लिए ही) कोई और चला सकता है, उससे कोई पूछताछ सरकार नहीं करेगी और अपनी मर्जी से हिसाब देने की आजादी होगी तथा उसे सरकारी नहीं कहा जाएगा – तो मुझे कुछ नहीं कहना है।
लेखक: संजय कुमार सिंह जी है को की पत्रकारिता जगत में बड़ा नाम है।
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