कानपुर कांड का पूरा सच वो नहीं है जो अखबारों में है , हालांकि हमको भी नहीं पता कि सच क्या है मगर इतना तय है कि अखबार में यदि कोई घटना सीधी-सादी दिख रही है तो तय है कि वो सीधी नहीं है।
कानपुर में जिस अपराधी का नाम आ रहा है वो कोई साधारण अपराधी नहीं था और ना ही उसको पहली बार पुलिस पकड़ने आ रही थी।
साठ से ज्यादा हत्याओं में उसका नाम था और सौ से ज्यादा मुकदमे उसके उपर चल रहे थे।
थाने के अंदर घुसकर उसने अपने तीन विरोधियों को मारा था।
जिला पंचायत का चुनाव भी उसने लड़वाया था अपने पत्नी को, इतना हाई प्रोफाइल बैक ग्राउंड वाला अपराधी मात्र एक गिरफ्तारी से बचने के लिए आठ पुलिसकर्मियों को मारने से बेहतर तो अरेस्ट स्टे ला देता।
पुलिस को मारकर उसकी अब तक की सारी उपलब्धियों पर पानी फिर गया।
रिटायरमेंट के करीब एक डिप्टी एसपी , तीन परविक्षा वाले सब इंस्पेक्टर और अंडर ट्रेनिंग सिपाही लेकर एक बदमाश को पकड़ने जाने वाली पुलिस टीम को भेजने वाला भी शक के दायरे से बाहर नहीं है।
कुल मिलाकर जिनके जीवन का अंत होना था हो गया अब देखना है कि कही उनके प्राण किसी षड्यंत्र की गुमनाम कहानी का हिस्सा न बनकर रह जाए।
लेखक : देश दीपक मिश्र
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