अब राजस्थान :-
कल शाम तक ऐसी संभावना थी कि शायद सचिन पायलट विद्रोह नहीं करेंगे। पर अब जो खबरें आ रही हैं उससे प्रतीत होता है कि वह आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं।
कल शाम 7:15 बजे चार्टर्ड प्लेन से उनको मुख्यमंत्री स्तर की बैठक में शामिल होना था पर वह ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बैठक करने लगे।
ऐसा लगता है कि सचिन पायलट ने काँग्रेस से बाहर कदम रख ही दिया है।
यदि आप जनमत का सम्मान नहीं कर सकते तो चले ही जाईए , और जाकर भाजपा में चाकरी करिए , जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया कर रहे हैं।
कभी शिवराज चौहान को ललकारने वाले सिंधिया उनके बराबर पहुँचने के बजाय आज उनकी ही जी हुजूरी में लगे हुए हैं। सचिन पायलट भी लग जाएँगे। वैसे भी काँग्रेस से भाजपा में गये नेता भाजपा में द्वितीय श्रेणी के ही नेता बन पाते हैं।
यह लोकतंत्र है यहाँ "मत" का महत्व होता है , चुनाव मत के ही आधार पर होते हैं। जिनके पास जनता का मत अधिक होता है वह जनता का प्रतिनीधि बनता है , जिनके पास उन चुने हुए प्रतिनिधियों का मत होता है वह विधायक या संसदीय दल का नेता होता है। जिनके पास सदन में अधिक मत होता है वही सदन का नेता होता है।
आपके पास 20-25 विधायक यदि हैं तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि जिसके पास 80-85 विधायक हैं उन पर आपको वरीयता दी जाए। जिसके पास विधायकों का मत अधिक होता है उसे नेता मानना ही पड़ता है।
विधायक दल में यदि बहुमत आपके पक्ष में नहीं है तो आपको उसका सम्मान करना चाहिए , और यदि आप सम्मान नहीं कर रहे हैं तो आप लोकतांत्रिक नहीं हैं बल्की किसी के हाथों खेल रहे हैं।
राजस्थान और मध्यप्रदेश के चुनावों में जो परिणाम आए उनके नंबरों के अनुसार जिनके पास अधिक मत था वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। आपको इस जनमत का सम्मान करना चाहिए।
यही स्वस्थ लोकतंत्र है
सीधी सी बात है , सिंधिया के पास मात्र 22 विधायक थे तो उनको कमलनाथ जिनके पास 90 विधायक थे उन पर वरियता कैसे दी जा सकती है ? सचिन पायलट के पास यदि 30 विधायक हैं तो अशोक गहलोत के पास 85 से अधिक विधायक हैं।
लोकतंत्र में नंबर का ही सम्मान करना होता है , यदि आप इसका सम्मान नहीं कर सकते तो कहीं भी जाइए , वहाँ जाकर कोई आपको सिर पर नहीं बिठा रहा है।
ज्योतरिदित्य सिंधिया भाजपा में गये मुख्यमंत्री बन गये क्या ? देश के नेता बनते थे , भाजपा में जाकर प्रदेश अध्यक्ष की चमचागिरी करते दिख रहे हैं।
राव इंदरजीत भाजपा में गये हरियाणा के CM बन गये क्या ? वहाँ वह भी प्रदेश स्तर पर चाटुकारिता कर रहे हैं ?
चौधरी वीरेंद्र सिंह भाजपा में गए हरियाणा के CM बन गये क्या ? वहाँ वह भी प्रदेश स्तर पर चाटुकारिता कर रहे हैं।
हेमंत बिस्वा सरमा भाजपा गये और असाम के CM बन गये क्या ? वहाँ वह भी प्रदेश स्तर पर चाटुकारिता कर रहे हैं।
यह लोग भी तो काँग्रेस में रह कर मुख्यमंत्री के लिए ही विद्रोह किए थे ?
पर राहुल गाँधी नहीं बदलने वाले।
एक बार एक प्रतिष्ठित मीडिया के पत्रकार से मैंने पूछा था कि कर्नाटक और मध्यप्रदेश की सरकारें काँग्रेस क्युँ नहीं बचा पाईं ?
उन्होंने जो जवाब दिया उसे सुनिए।
उनका कहना था कि काँग्रेस के एक संकटमोचक नेता से बात हुई थी और मैंने यही सवाल उनसे आफ द रिकार्ड पूछा था तो उन्होंने कहा कि कर्नाटक सरकार बचाने के लिए ₹250 करोड़ की ज़रूरत थी , राहुल गाँधी से बात की तो उन्होंने कहा कि यदि आप ऐसे सरकार बचा सकते हैं तो बचा लीजिए नहीं तो गिर जाने दीजिए , पैसे के बल पर सरकार नहीं बचाई जाएगी।
इसीलिए मैं राहुल गाँधी की प्रशंसा करता हूँ , बंदा अपने सिद्धांत पर अडिग है , सरकारें आती जाती रहेंगी पर इतिहास में सिद्धांत की राजनीति करने वाले ही याद किए जाते हैं।
सैकड़ों साल के इतिहास में सिंधिया हों या पायलट हैं , बहुत सुक्ष्म विषय हैं। बड़ा महत्व यह है कि नैतिक सिद्धांतों पर साफ सुथरी राजनीति किसने की है।
भाजपा को पूरे देश में अपनी ही सरकार चाहिए , बना ले , सबका एक दौर होता है , इनका आज है , कबतक रहेगा ? 10 साल ? 20 साल ? 30 साल ?
नैतिकताएँ हज़ारों साल का परिक्षण माँगती हैं , ठीक ही किया राहुल-सोनिया ने कि सचिन पायलट को मिलने का समय नहीं दिया , सिंधिया को मिलने का समय नहीं दिया , हेमंत विश्वा सरमा को मिलने का समय नहीं दिया।
जब आपको पार्टी के सिद्धांत , विचार और लोकतांत्रिक मुल्यों में भरोसा ही नहीं तो क्या मिलना ? आगे भी यदि यही ज़िद रही तो नहीं ही मिलना चाहिए।
ऐसा नहीं कि काँग्रेस में कोई अमितशाह जैसा गेम नहीं खेल सकता , कोई मोदी जैसा गेम नहीं खेल सकता , पर वहाँ राहुल गाँधी है जो यह गेम खेलने नहीं देगा।
सरकारें आती जाती रहेंगी , इतिहास में मोटी लकीर खींचने के लिए लंबा अरसा चाहिए , नैतिकता और मूल्य ऐसे ही समय में परखें जाते हैं।
सरकारों का क्या ? आज जाएँगी तो कल आएँगी।
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