एक भ्रष्ट, झूठी, अन प्रोफेशनल पुलिस ने अपनी लापरवाही, भीतरघात और घूसखोरी के चलते अपने दस साथी शहीद करवा दिए। घटना के 35 घण्टे हो गए और 55 साल का विकास दुबे का कोई सुराख लगा नहीं।
ऐसे में बौखलाहट में पुलिस ने बदमाश विकास दुबे को घर जेसीबी लगा कर खोद दिया। बिल्कुल अंग्रेज सरकार की तरह।
यह कौनसा कानून है? ठीक यही लखनऊ पुलिस ने भी किया। दिसम्बर के सी ए ए विरोधी प्रदर्शन में जो लोग हिंसा रोक रहे थे उन्हें ही सम्पत्ति नुकसान पर वसूली का नोटिस भेज दिया।
पुलिस के पास अन्वेषण, मुखबिरी, प्रोसेक्यूशन की शक्ति है लेकिन वह घर खोद रही है।
शहीद पुलिसवालों के लिए यदि असली गुस्सा था तो पांच हज़ार की फोर्स अभी तक फरार को तलाश कर मारती।गांव में कहावत है शेर पर बस न चले तो गधे के कान उमेठो। विकास के रिश्तेदारी में जा कर घर का सामान और गाड़ियां तोड़ कर पुलिस लुच्चई कर रही है।
श्री शम्भूनाथ शुक्ल जी का सुझाव सही है कि मामले की जाँच एन आई ए को सौंप दें, छह महीने का सी डी आर सामने आ जाये। खुलासा हो जाएगा कि दुबे जी किसकी दम पर कूद रहे थे।
लेखक : पंकज चतुर्वेदी
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