10 पुलिस वालों का हत्यारा विकास दूबे अभी तक कानून की पकड़ से बाहर है।
कानपुर के चौबेपुर थानाध्यक्ष विनय तिवारी संदेह के घेरे में हैं और उनसे पूछताछ हो रही है। STF लखनऊ ले गई है। इन पर आतंकवादी विकास दुबे को पुलिस कार्रवाई की पूर्व सूचना देने का शक है।
यह भी अपनी टीम लेकर गए थे साथ में, लेकिन पीछे बहुत दूर बने रहे । उधर, आतंकवादी ने रिवर्स एनकाउंटर कर दिया।
विनय तिवारी फिल्मी पुलिस की तरह सब कुछ निपट जाने के बाद अपनी टीम के साथ पहुंचे थे , फिल्म चाइनागेट के थानाध्यक्ष की तरह।
सीओ देवेश मिश्र समेत 8 लोग मौके पर ही शहीद हो गये।
कानपुर पहुंचे एडीजी (एलओ) प्रशांत कुमार ने कहा, 'पुलिस की तरफ से चूक हुई है। इस मामले की भी जांच होगी"
मरे भी पुलिस वाले और चूक भी उन्हीं की हुई।
दरअसल पुलिस ने अपने डिप्टी एसपी ज़िया उल हक , इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के हत्यारों को उनके अंजाम तक पहुँचा दिया होता तो किसी विकास दूबे की इतनी हिम्मत ना होती कि इतने पुलिस वालों का इनकाउंटर कर दे।
पुलिस भी क्या करे ? नेताओं के हुक्म की गुलाम है , जिसकी सरकार होती है उसी को सलामी बजाती है।
विकास दुबे की माँ सरला दुबे ने कहा है, "मेरा लड़का आतंकी है, उसे मार दो"। उन्होंने कहा, कि 'लड़का बदमाश है, उसे खूब समझाया लेकिन नहीं सुधरा। उसने जो किया है, उसके लिए मौत की सजा कम है, उसे तो सीधे गोली मार देनी चाहिए'। अमर उजाला के संवाददाता ने उनसे बातचीत की और अख़बार ने यह बातचीत पहले पेज पर छापी है।
जो लोग फ़ेसबुक पर उसे ब्राह्मण समाज का गौरव बताने वाली किसी ऐसी-वैसी पोस्ट पर पिले पड़े हैं, उनको यह खबर भी पढ़नी चाहिए। लेकिन गुबरीला तो गोबर ही खाता है।
मारने वाले , दूबे , मरने वाले मिश्रा , मुखबिरी करने वाले तिवारी और अब सुनने में आ रहा है कि जहाँ घटना हुई वह क्षेत्र ब्राम्हण बाहुल क्षेत्र है , दूबे को उस क्षेत्र के लोगों का समर्थन प्राप्त है।
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