बुन्देलखंड
के ग्रामीण इलाकों में नागपंचमी के दिन गांवों में घर-घर दरवाजे पर नाग
देवता के चित्र चिपकाकर इस पर्व को धूमधाम से मनाये जाने की परम्परा कायम
थी लेकिन कोरोना संक्रमण काल में इस परम्परा को ग्रहण लग गया है। गांवों
में महिलाओं ने गाय के गोबर से नाग की आकृति बनाकर विधि विधान से पूजा
अर्चना की। इधर नाग देवता के मंदिरों में कोरोना वायरस महामारी के कारण
सन्नाटा पसरा है।
सावन
मास का शनिवार अद्भुत संयोग लेकर आया है। पच्चीस सालों के बाद इस साल
नागपंचमी शनिवार को पडऩे से श्रद्धालुओं में विशेष पूजा के लिये उत्साह
देखा जा रहा है। लेकिन कोरोना के खौफ के कारण जनपद के सुमेरपुर, मौदहा,
गोहांड, राठ, कुरारा और सरीला सहित समूचे क्षेत्र में नागपंचमी की धूम
घर-घर मची हुयी है।
यहां
के पंडित दिनेश दुबे ने बताया कि हजारों साल पुरानी परम्परा के अनुसार
घरों के मुख्य दरवाजों पर गाय के गोबर से नागों की आकृति बनाकर घी गुड़ से
पूजन किये जाने की परम्परा कायम है। शाम को इन्हीं आकृतियों में गाय का दूध
छिड़कर परम्परा का निर्वहन किया जाता है। उन्होंने बताया कि शनिवार को
नागपंचमी की पूजा विधि विधान से करने और नागों को दूध पिलाने से काल सर्प
दोष से निजात मिलेगी।
बुन्देली
परम्परा के मुताबिक गांवों के चौकीदार घर-घर जाकर नाग चित्र चिपकाते है।
गांवों के मठ मंदिरों में भी नाग चित्र भेंट करने की प्रथा रही है लेकिन इस
बार कोरोना के कारण इस परम्परा को तगड़ा झटका लगा है। नाग पंचमी के दिन
तमाम जगहों पर आल्हा गायन और दंगल आदि के कार्यक्रमों के साथ शाम को
महिलायें सावन गीत एवं मंगल गीत गाकर भुजरियां बोने के लिये मिट्टी लेने
जाती थी मगर ये परम्परायें अबकी बार कीं दिखायी नहीं पड़ी।
पूरे
क्षेत्र में नागपंचमी का पर्व श्रद्धा, उत्साह के साथ परम्परागत ढंग से
लोग घरों के अंदर ही मना रहे है। साहित्यकार डा.भवानीदीन ने बताया कि
मान्यता के मुताबिक नागपंचमी के दिन घर-घर में बोयी गयी भुजरियां (कजली)
रक्षाबंधन तो सरोवरों में विसर्जित की जाती थी इसके लिये कहीं-कहीं महिलाओं
ने घरों में ही भुजरियां बोने की रस्में निभायी है। जनपद के कुरारा
क्षेत्र के टोडरपुर गांव में स्थित नाग देवता के मंदिर में आज कोरोना के
कारण सन्नाटा पसरा है।
कभी
नागपंचमी के दिन हजारों की संख्या में लोग यहां मंदिर में माथा टेक कर
नागपंचमी की पूजा करते थे और बेशकीमती पत्थर से बने नाग देवता पर दूध
अर्पित किया जाता था। इसके साथ ही यहां दो दिवसीय मेले का भी आयोजन होता था
मगर अबकी बार कोई भी धार्मिक कार्यक्रम नही हो रहे है। गांव के ग्राम
प्रधान प्रतिनिधि वासुदेव ने बताया कि नाग देवता के मंदिर में पूजा करने के
लिये जालौन, फतेहपुर, कानपुर देहात व अन्य आसपास के इलाकों से भारी तादात
में श्रद्धालु आते रहे है।
मंदिर
प्रांगण में भजन कीर्तन का कार्यक्रम भी होता था मगर कोरोना संक्रमण काल
में कोई भी आयोजन नही हो रहे है। बता दे कि इस गांव में 23 साल पहले नाग
देवता का मंदिर इसलिये बनाया गया था क्योंकि यहां सांपों का आतंक था। मंदिर
बनने के बाद आज तक इस गांव में सर्पदंश से एक भी मौत नहीं हुयी है। जिले
के मुस्करा क्षेत्र के अलरा गांव में भी नाग देवता के मंदिर में गांव के
लोगों ने सामाजिक दूरी के बीच नाग देवता की प्रतिमा पर दूध से जलाभिषेक
किया है।
बालिकाओं ने कपड़े की गुडिय़ा बनाकर मनायी नागपंचमी
ग्रामीण इलाकों में बच्चियों ने कपड़े की पांच गुडिय़ा बनाकर पहले तो हवा में उछालकर खेला फिर गुडिय़ा
एक-एक कर सरोवर में फेंका। घर के बड़े लोगों ने सरोवर पहुंचकर लाठी डंडे से
गुडिय़ा की कुटायी की। बुन्देलखंड क्षेत्र में नागपंचमी के दिन गुडिय़ा
सरोवर में फेंकने और इसे कूटने की भी परम्परायें है जिसे कुरारा क्षेत्र के
मनकी खुर्द गांव में देखा गया।
यहां
ढाई माह से अपने गांव में रह रहे बालीवुड के युवा कलाकार सोमेन्द्र कुमार
ने बताया कि गांव में हर घर के बाहर दरवाजे पर गोबर और घी से नाग देवता के
चित्र लोगों ने बनाये है। इसकी पूजा भी महिलाओं ने की है। अब शाम को नाग
देवता के चित्र पर गाय का दूध चढ़ाया जायेगा। उन्होंने बताया कि गांव में दस
साल से पन्द्रह साल के बालिकाओं ने कपड़े की गुडिय़ा बनायी और इससे खेलने के
बाद गुडिय़ों को नजदीक के यमुना नदी किनारे फेंका गया। फिर बालिकाओं के
भाईयों ने लाठी डंडे से गुडिय़ों की कुटाई की।
गांव
के ठाकुरदीन एडवोकेट ने बताया कि नागपंचमी के दिन गुडिय़ां बनाकर नदी या
सरोवर में फेंककर कूटना और घरों के बाहर दरवाजे पर गोबर और देशी घी से नाग
देवता के चित्र बनाकर पूजा करने की परम्परा बहुत पुरानी है जो कोरोना काल
में भी उनके गांव में देखी जा सकती है। हालांकि इस दौरान सामाजिक दूरी का
लोग ख्याल रख रहे है।
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