उत्तर प्रदेश की योगी और केन्द्र सरकार फिलहाल दो काम बहुत मुस्तैदी से कर रही है।
एक तो अपने पक्ष के लोग चाहे गुंडे हों , बलात्कारी हों , हत्यारोपी हों या ज़हरीले भाषण देने वाले हों , सब पर दर्ज मुकदमा वापस ले रही है।
कल जयाप्रदा पर भी दो मुकदमें खत्म कर दिए गये।
तो दूसरे उसके खिलाफ बोलने वाले , लिखने वाले या उसके किसी निर्णय या बनाए कानून का लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करने वाले लोगों पर मुकदमा दर्ज कराकर जेल भेज रही है।
लोकतंत्र में सरकारें हमेशा किसी की नहीं रहा करतीं , फिलहाल सत्तारूढ़ द्वारा खेला जाने वाला खेल यदि कल सत्ता में आने वाली विरोधी पार्टियाँ खेलने लगीं तो आज सत्ता में बैठे लोगों को इससे कहीं अधिक समस्या आएगी जो आज लोगों को आ रही है।
उसका कारण है कि आज सत्तारूढ़ दलों के हाथ कहीं अधिक काले हैं।
सरकारें सीएए और एनआरसी का विरोध कर रहे एक एक आंदोलनकारी को पकड़ कर अंदर कर रही है। क्या आज के लोकतंत्र में किसी के विरोध का अधिकार समाप्त हो गया है ?
एक बहाना ढूँढ लिया गया है कि फला जगह की हिंसा में यह मौजूद था।
उत्तर प्रदेश काँग्रेस के अल्पंख्यक मोर्चे के अध्यक्ष शाहनवाज आलम को ऐसे ही आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया , जबकि लखनऊ हिंसा को 6 महीने गुज़र गये।
काँग्रेस और उसके प्रदेश अध्यक्ष का इसके विरोध में प्रदर्शन किया गया जिसमें उनसे की गयी धक्कामुक्की निंदनीय है , पर फिलहाल उत्तर प्रदेश काँग्रेस में कुछ जान तो आ चुकी है।
विपक्ष के नाम पर उत्तर प्रदेश में सिर्फ काँग्रेस ही है , बाकी सब डर कर भाजपा के प्रवक्ता बन गये हैं।
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