खलनायक की कहानी :-
भारतीय वालीवुड फिल्मों में किरदारों के निर्धारण में जाति और धर्म सदैव से पक्षपात का एक कारण रहा है। पर 1989-90 के पहले तक पक्षपात का इतना विकृत रूप नहीं रहा है
1989-90 के बाद जब देश में संघ ने अपने फन फैलाए तो प्रकाश झा जैसे निर्माता निर्देशकों ने बिहार की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों में पिछड़े जाति सूचक किरदारों को खलनायक बनाना शूरू किया।
बच्चा यादव , बच्चू यादव , साधू यादव जैसे फिल्मी किरदारों ने जितना लालू प्रसाद यादव और बिहार की छवि को नुकसान पहुँचाया वहीं ऊँची जातियों के समर प्रताप सिंह , अमित कुमार जैसे किरदारों ने हिन्दी सिनेमा में यह स्थापित किया कि ऊँची जातियाँ फिल्मों का हीरो और निचली जातियाँ खलनायक बन कर ही फिल्में हिट कराईं जा सकती हैं।
1989-90 का दौर जातिवादी मंडल आयोग और कमंडल वादी के बीच वर्चश्व का दौर था , और तब प्रकाश झा जैसे तमाम निर्देशकों ने इसी दौर में पिछड़ी और दलित जाति सूचक किरदारों को खलनायक बना कर समाज में एक मानस सेट कर दिया।
समय के साथ साथ परिस्थीतियाँ बदलीं तो बालीवुड फिल्मों के खलनायक मुसलमान नाम वाले बनने लगे , फिर वह चाहे काश्मीर के आतंकवादी हों या कट्टरपंथी चरमपंथी किरदार या पीरियड फिल्मों के मुस्लिम शासक।
हिन्दी फिल्मों के निर्माता निर्देशकों ने समाज के मानस को बदलने का भरपूर काम किया और मजेदार बात यह रही कि पिछड़े दलित और मुस्लिम ऐसी ही फिल्मों पर ताली बजा कर थिएटर से बाहर आ जाते थे।
1989 के पहले राजकपूर की फिल्मों में अक्सर ठाकुर या पंडित खलनायक हुआ करता था , राजकपूर का पूरा इतिहास ही ठाकुर और ब्राम्हणों के आडंबर पर चोट करने से भरा पड़ा है।
चाहे प्रेमरोग हो , राम तेरी गंगा मैली हो या सत्यम शिवम सुंदरम। हर फिल्म में उन्होंने समाज के उच्च वर्ग और उच्च जातियों के ढकोसलों पर चोट की है।
पर 1989-90 के बाद बदलते भारत में फिल्में बदलीं और फिल्मों के जाति और धर्म आधारित किरदार बदले और बहुत हद तक इसी से भारतीय समाज की मानसिकता बदल गयी।
अब आप किसी फिल्म में दलित , पिछड़े या मुसलमान नायक और अगड़ी जाति के खलनायक को दिखाकर फिल्में हिट होने की उम्मीद कर भी नहीं सकते।
ऐसा ही मामला अपराधों में भी देखने को मिलता है , अपराधी मुसलमान हुआ तो आतंकवादी और दलित हुआ तो नक्सल माओवादि , पिछड़ा हुआ तो गुंडा।
इसको समझने के लिए आपको "शेर सिंह राणा" को समझना होगा।
फूलन देवी को मैं भारत की "मदर इंडिया" यदि ना भी कहूँ तो "डाॅटर आफ इंडिया" कहने में कोई हिचक नहीं। मेरी नज़र में फूलन देवी भारत में महिलाओं की अस्मिता और सम्मान की देवी हैं , जिन्होंने अपने ऊपर हुए यौन आत्याचार और अपने साथ हुए सामूहिक बलात्कार का बदला उसी पुरुष समाज से लिया।
25 जुलाई 2001 को "शेर सिंह राणा" नाम के एक शख्स ने उनकी हत्या कर दी और ऐलान किया कि उसने फूलन देवी को मार कर "बेहमई कांड" का बदला लिया।
14 फरवरी 1981 को डकैत फूलन देवी के गिरोह ने बेहमई गांव में धावा बोलकर उन 20 लोगों की हत्या कर दी थी जिन्होंने उनका सामूहिक बलात्कार किया था।
बेहमई कांड करके फूलन देवी ने जो कानून तोड़ा उसकी कानून ने उनको सजा दी थी , जिसे वह भुगत चुकी थीं फिर भी शेर सिंह राणा ने उनकी हत्या कर दी।
शेर सिंह राणा उच्च जाति का है , फूलन देवी की हत्या के 19 साल बाद आज वह कहाँ है ?
17 फ़रवरी 2004 को सुबह 6 बजकर 55 मिनट पर तिहाड़ जेल में शेर सिंह राणा से मिलने एक पुलिस अफसर आता है। अफसर कहता है कि कोर्ट में राणा की पेशी है इसलिए ले जाना है।
महज़ 10 मिनट के अंदर यानी 7 बजकर 5 मिनट पर फूलन देवी की हत्या का मुख्य आरोपी शेर सिंह राणा तिहाड़ से चला जाता है। 40 मिनट बाद यानी पौने आठ बजे जेल प्रशासन को पता चलता है कि राणा कोर्ट नहीं गया है बल्कि जेल से फरार हो गया है।
यह चमत्कार देश की सबसे सुरक्षित माने जाने वाली दिल्ली की "तिहाड़ जेल" में हुआ , क्या आप कल्पना कर सकते हैं ?
फिर वह साल 2005 में अचानक प्रकट होता है कि वह अफगानिस्तान से पृथ्वीराज चौहान की अस्थियां लेकर भारत आया है और उसने पूरे घटनाक्रम की वीडियो भी बनाने का भी दावा किया।
अगस्त 2014 में दिल्ली की एक निचली अदालत ने फूलन देवी हत्याकांड के दोषी शेर सिंह राणा को उम्रकैद तथा 1 लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है और इसी अदालत से शेर सिंह राणा को वर्ष 2017 में जमानत दे दी।
शेखर कपूर की "बैंडिट क्वीन" के बदले में उनके हत्यारे शेर सिंह राणा पर "एंड ऑफ़ बैंडिट क्वीन" फिल्म भी बनाई गयी जिसमें शेर सिंह राणा का किरदार "नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी" ने निभाई।
छतरपुर के पूर्व विधायक हैं राणा प्रताप सिंह और उनकी पत्नी संध्या राजीव बुंदेला छतरपुर के गवारा से नगर पालिका अध्यक्ष हैं और उनकी बेटी प्रतिमा राणा ने पॉलटिकल साइंस से एमए किया है और इनसे ही शेर सिंह राणा का 2018 में विवाह भी हो गया है।
राणा की शादी का रिसेप्शन फंक्शन दिल्ली रोड स्थित एक शानदार होटल में किया गया जिसमें कुछ चुनिंदा लोग ही शामिल हुए।
यही नहीं , ज़मानत पर छूटा एक पूर्व सांसद का सज़ायाफ्ता हत्यारा 2012 में जेवर विधानसभा से चुनाव भी लड़ चुका है। आज 19 साल बाद वह उम्रकैद की सज़ा के बावजूद आलीशान ज़िन्दगी जेल से बाहर गुज़ार रहा है।
बाकी का उदाहरण क्या दूँ ? बस डर है कि कहीं विकास दूबे भी "शेर सिंह राणा" ना बन जाए। क्युँकि अब कानून की देवी की आँख पर पड़ी पट्टी खुल चुकी है।
वह जाति और धर्म देख सकती है।
मो जाहिद
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