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Sunday, 5 July 2020

सावन में बाबा भोलेनाथ का रुद्राभिषेक कर दुःख, रोग व समस्या से छुटकारा पाएं, जाने सही विधि - ज्योतिषाचार्य प्रणव ओझा

रुद्राभिषेक कर दुःख-रोग-समस्या से छुटकारा पाएं

रुतं--दु:खं, द्रावयति--नाशयति इति रुद्र:। 
अर्थात रुद्र अर्थात् 'रुत्' और रुत् अर्थात् जो दु:खों को नष्ट करे, वही रुद्र

रुद्राभिषेक भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे प्रभावी उपाय है। श्रावण मास या शिवरात्रि के दिन यदि रुद्राभिषेक किया जाये तो इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। जीवन में कोई कष्ट हो या कोई मनोकामना हो तो सच्चे मन से रुद्राभिषेक कर के देखें निश्चित रूप से अभीष्ट लाभ की प्राप्ति होगी। रुद्राभिषेक ग्रह से संबंधित दोषों और रोगों से भी छुटकारा दिलाता है। शिवरात्रि, प्रदोष और सावन के सोमवार को यदि रुद्राभिषेक करेंगे तो जीवन में चमत्कारिक बदलाव महसूस करेंगे।

रुद्राभिषेक का महत्व
 
विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ। जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना चाहिए।
 
रुद्र भगवान शिव का ही प्रचंड रूप हैं। इनका अभिषेक करने से सभी ग्रह बाधाओं और सारी समस्याओं का नाश होता है। रुद्राभिषेक में 'शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी' के मंत्रों का पाठ किया जाता है। अभिषेक के कई प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है रुद्राभिषेक करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है क्योंकि वह अपनी जटा में गंगा को धारण किये हुए हैं।
 
'रुद्रहृदयोपनिषद' में कहा गया है
सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:।
रुद्रात्प्रवर्तते बीजं बीजयोनिर्जनार्दन:।।
यो रुद्र: स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मा स हुताशन:।
ब्रह्मविष्णुमयो रुद्र अग्नीषोमात्मकं जगत्।।
यह श्लोक बताता है कि रूद्र ही ब्रह्मा, विष्णु है सभी देवता रुद्रांश है और सबकुछ रुद्र से ही जन्मा है। इससे यह सिद्ध है कि रुद्र ही ब्रह्म है, वह स्वयम्भू है।


रुद्राभिषेक से होने वाले लाभ
 
आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे हैं उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए इसका उल्लेख शिव पुराण व अन्य शास्त्रों ओरणों में दिया गया है।
 
- यदि वर्षा चाहते हैं तो जल से रुद्राभिषेक करें।
- रोग और दुःख से छुटकारा चाहते हैं तो कुशा जल से अभिषेक करना चाहिए।
- मकान, वाहन या पशु आदि की इच्छा है तो दही से अभिषेक करें।
- लक्ष्मी प्राप्ति और कर्ज से छुटकारा पाने के लिए गन्ने के रस से अभिषेक करें।
- धन में वृद्धि के लिए जल में शहद डालकर अभिषेक करें।
- मोक्ष की प्राप्ति के लिए तीर्थ से लाये गये जल से अभिषेक करें।
- बीमारी को नष्ट करने के लिए जल में इत्र मिला कर अभिषेक करें।
- पुत्र प्राप्ति, रोग शांति तथा मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए गाय के दुग्ध से अभिषेक करें।
- ज्वर ठीक करने के लिए गंगाजल से अभिषेक करें।
- सद्बुद्धि और ज्ञानवर्धन के लिए दुग्ध में चीनी मिलाकर अभिषेक करें।
- वंश वृद्धि के लिए घी से अभिषेक करना चाहिए।
- शत्रु नाश के लिए सरसों के तेल से अभिषेक करें।
- पापों से मुक्ति चाहते हैं तो शुद्ध शहद से रुद्राभिषेक करें।
 
सावन मास के बारे में बहुत सारी महत्वपूर्ण वीडियोज हम अपने यूट्यूब चैनल भाग्यनेत्रम् BhagyaNetram में भी लेकर आये हैं

कहां करना चाहिए रुद्राभिषेक🤔❓
 
- यदि किसी मंदिर में जाकर रुद्राभिषेक करेंगे तो बहुत उत्तम रहेगा।
- किसी ज्योतिर्लिंग पर रुद्राभिषेक का अवसर मिल जाए तो इससे अच्छी कोई बात नहीं।
- नदी किनारे या किसी पर्वत पर स्थित मंदिर के शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना सबसे ज्यादा फलदायी है।
- कोई ऐसा मंदिर जहां गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित हो वहां पर रुद्राभिषेक करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
- घर में भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है।
- शिवलिंग न हो तो अंगूठे को भी शिवलिंग मानकर उसका अभिषेक कर सकते हैं।
 
ध्यान रखें कि रुद्राभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए। तांबे के पात्र में जल का तो अभिषेक हो सकता है लेकिन तांबे के साथ दूध का संपर्क उसे विष बना देता है इसलिए तांबे के पात्र में दूध का अभिषेक वर्जित होता, जल से अभिषेक करना है तो ताम्रपात्र में भी कोई समस्या नहीं है

'वायुपुराण' में लिखा है--
यश्च सागरपर्यन्तां सशैलवनकाननाम्।
सर्वान्नात्मगुणोपेतां सुवृक्षजलशोभिताम्।।
दद्यात् काञ्चनसंयुक्तां भूमिं चौषधिसंयुताम्।
तस्मादप्यधिकं तस्य सकृद्रुद्रजपाद्भवेत्।।
यश्च रुद्राञ्जपेन्नित्यं ध्यायमानो महेश्वरम्।
स तेनैव च देहेन रुद्र: सञ्जायते ध्रुवम्।।
अर्थ: जो व्यक्ति समुद्रपर्यन्त, वन, पर्वत, जल एवं वृक्षों से युक्त तथा श्रेष्ठ गुणों से युक्त ऐसी पृथ्वी का दान करता है, जो धनधान्य, सुवर्ण और औषधियों से युक्त है, उससे भी अधिक पुण्य एक बार के रुद्री जप एवं रुद्राभिषेक का है। इसलिये जो भगवान शिव का ध्यान करके रुद्री का पाठ करता है, वह उसी देह से निश्चित ही रुद्ररूप हो जाता है, इसमें संदेह नहीं है।

भाग्यनेत्रम, प्रयागराज
ज्योतिषाचार्य प्रणव ओझा 
रिपोर्ट : अंजनी त्रिपाठी

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