इंडस्ट्रिलिस्ट, बिजनेसमैन, अन्तरप्रेन्योर
तीन अलग शब्द हैं, तीन अलग अर्थ। मगर इनके मायने समझिये और भारत के वर्तमान व्यावसायिक पराभव का कारण ठीक से समझ आएगा। एंटरप्रेन्योर वो जो कोई ऐसा काम शुरू करे, जिसमे पैसा खोने का खतरा हो। इंडस्ट्रिलिस्ट वो जो किसी बड़े उत्पादन तंत्र प्रबंधन करता हो। बिजनसमैन वो, जिसे इधर का सामान उधर कर पैसा बनाना आता हो।
भारत के बड़े से बड़े नामी उद्यमी घराने का नाम सोचिये। उसने आपकी जिंदगी को कितना बदला है?? यूं समझिये, कि विंडोज नाम के एक प्रोडक्ट से कंप्यूटर हर घर मे पहुंच गया, दुनिया डिजिटल हो गयी। 1980 और 2020 की दुनिया के बीच 100 साल का अंतर है। माइक्रोसॉफ्ट और बिल गेट्स की यह देन है।
जेरोक्स कंपनी का नाम है। इसके प्रोडक्ट ने ऑफिसेज के काम करने के ढंग को बदला। कोडक ने स्मृतियां सहेजी। मारुति ने आम आदमी का आना जाना सुलभ किया। रिलायंस ने क्या बदला है? एक प्रोडक्ट का नाम बताइये, जो मनुष्यता या भारतीयों को नया उपहार हो।
सस्ते टेरेलीन के कपड़े धीरूभाई के उपहार माने जा सकते हैं। इसके बाद पेट्रोल, डीजल, सब्जी, मोबाइल, फाइनैंस, डिफेंस, एंटरटेनमेंट, मीडिया, हेल्थकेयर, रिटेल.. हर ओर साम्राज्य बढ़ा है। मगर यह इंडस्ट्रियल या अन्तरपेन्योरशिप नही। यह विशालकाय पंसारी का अंतहीन डिपार्टमेंट स्टोर है।
इसमे कोई नई चीज या नई सेवा नही है। बाजार में मौजूद पुरानी सेवाओ का अतिक्रमण है। पिछले 25 साल और विशेष तौर से पिछले 6 साल- नए क्षेत्रो में प्रवेश, मौजूदा ताकतों को धकियाना, तोड़ना, कब्जा करना, और एकक्षत्र राज कायम करना ध्येय रहा है।
पैसा बड़ी ताकत है। कुछ समय के लिए अनरियलिस्टिक कीमतें, जिससे उपभोक्ता टूटकर इनकी किटी मे आ जाये, औऱ दुसरो के ऑपरेशन खत्म। यह व्यापारिक युद्ध हैं। मगर क्या इतना ही??
_____________
वोडाफोन का भारत छोड़कर जाना एक महत्वपूर्ण परिघटना है। उसने जाते जाते आरोप लगाए की "भारत मे लेवल प्लेइंग फील्ड न मिलने के कारण कंपटीटिव बिजनेस एनवायरमेंट नही है"। यह बेहद खतरनाक स्टेटमेंट हैं। समझ न आया तो इस वाक्य को चार बार पढिये।
जरा समझिये bsnl मरते तक गुहार लगाता है कि 4g लाइसेंस दिया जाएं। जियो5g के युग मे जा रहा है, वह 2g सेवा दे रहा है, खत्म हो रहा है। खत्म हो गया। इसमे सरकार को मिलने वाला लाभांश और टैक्स गया। आप सोचेंगे कि उसका व्यापार जियो को गया तो उतना टैक्स वहाँ से भरपाई हो जाएगी। जी नही जनाब, फ्री सेवा पर बिल नही। बिल नही तो टैक्स नही। रिलायन्स दो साल बाद चार्ज करने लगेगी। दो साल के सरकारी लॉस की भरपाई कहां से होगी??
अजी आपसे। पेट्रोल डीजल पर टैक्स बढ़ाकर।
समझिये कि चंद चुने हुए औद्योगिक घरानों के लिए, सरकारी पॉलिसीज को ऐसे बुना जाता है, कि दूसरे उखड़कर गिर जायें। उखड़ी हुई जगह पर चुनी हुई प्रजाति के पौधे रोप दिए जाते हैं। इन्ही 20 घरानों के व्यापार से शेयर मार्केट चढ़ता है। 50 शेयर आकाश तक बढ़ते है। दस हजार दूसरी डूबती हैं। मगर एवरेज पॉजिटिव मेंटेन होता है।
फेवर फ्री होते है, अगर आपको ऐसा लगता है तो आप पुरूष नही, महापुरुष है। जिनकी जुबान लम्बी होती है, पेट उतना बड़ा होता है। फेवर बदलते है, कठिनाई ये, कि कुछ परमानेंट फेवरिट्स को छोड़, कब किसको फेवर मिल जाएंगे, किसके खत्म कर दिए जाएंगे .. कोई नही जानता। न एंटरप्रेन्योरशिप, न बिजनेस स्किल, न इंडस्ट्री का का गुण आपकी सक्सेस तय करेगा। आपकी शीर्ष तक पहुंच ही आपके फेवर्स और बिज़नेस की सफलता सुनिश्चित करती है। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।
उनके आठ बजे हाथ हिलाते ही दुनिया बदल जाती हैं। आठ रोज बजता है।
____________
इस अनिश्चित, अनैतिक, असुरक्षित माहौल में, इन्वेस्टमेंट करने वाले भाग खड़े हुए। टैक्स घटा, सरकारी घाटा बढ़ता गया। उसकी पूर्ति आपकी और रिजर्व बैंक की अंटी से होती रही। जॉब गए सो अलग, जल्द लौटेंगे भी नही।ऊपर से कॅरोना और लॉक डाउन। सब खाली है, सुन्न सपाट है। देश की ग्रोथ निगेटिव है, उनका मुनाफा आसमान पर।
जब आप राम भज रहे थे, थाली बजा रहे थे, मुल्ले टाइट कर रहे थे, 370 के खिलौने से खेल रहे थे, स्टेज के पीछे उनका साम्राज्य बढ़ाया जा रहा था। हंसी और गुस्सा दोनों आता है, उनपर जो अब भी पप्पू, राम, रोम, नेहरू, हिन्दू राष्ट्र की रट लगा रहे हैं।
तो महारानी साहिबा ने हमे हेल्थकेयर देने का बीड़ा उठा लिया है। फ्यूचर साफ है साहबान, हिन्दू रिपब्लिक से आपका मतलब शायद अम्बानी रिपब्लिक था। बधाई हो। आप उसकी दहलीज पर हैं।
मनीष सिंह
No comments:
Post a Comment