श्रीराम कथा के वाचन के लिए देश दुनिया में विख्यात कथा व्यास मोरारी बापू की रामकथा कुशीनगर के बाद प्रमुख बौद्ध तीर्थ स्थल सारनाथ, बोधगया व लुंबनी में भी होगी। कुशीनगर बुद्ध की निर्वाणस्थल, लुंबनी जन्मस्थल, सारनाथ प्रथम उपदेशस्थल तो बोधगया ज्ञान प्राप्त स्थल है।
इन चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर चीन,जापान, थाईलैंड, म्यांमार, कम्बोडिया,
श्रीलंका आदि देशों के बौद्ध अनुयाई इन स्थलों पर आने को आतुर रहते हैं।
देश के प्रमुख हिन्दू तीर्थस्थलों पर रामकथा सुना चुके बापू की कुशीनगर में
854वीं रामकथा है। अंतिम 853वीं रामकथा गंगा किनारे शुक्रतीर्थ मुजफ्फरनगर
में हुई थी। बुद्ध भूमि पर कथा सुनाने की इच्छा अपने शिष्यों से व्यक्त की
थी। पहले तो शिष्यों ने बुद्ध की जन्मस्थली लुंबनी नेपाल के लिए प्रयास
किया, किन्तु कोविड-19 के प्रसार के कारण नेपाल सरकार ने अनुमति नही दी तो
कुशीनगर का नाम फाइनल हुआ।
मोरारी बापू हिमालय में कैलाश-मानसरोवर, नीलगिरि पर्वत पर, बर्फानी बाबा
अमरनाथ के साथ-साथ चार धाम-बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमनोत्री और गंगोत्री जैसे
दुर्गम क्षेत्रों में रामकथा कह चुके हैं। गंगा तट पर स्थित शहरों में
रामकथा सुनाना बापू को अत्यंत प्रिय है। देश के किसी बौद्ध तीर्थस्थली पर
रामकथा सुनाने का यह पहला अवसर है। मोरारी बापू गिरनारी पर्वत श्रृंखला का
हिस्सा तुलसी-श्याम तीर्थ में विराजी मां रूक्मिणी के चरणों में रामकथा कह
चुके हैं।
आयोजन समिति के सदस्य सुमित त्रिपाठी व विक्रम अग्रवाल ने बताया कि मोरारी
बापू की रामकथा लुंबनी, बोधगया व सारनाथ में प्रस्तावित है। बौद्धस्थली पर
प्रासंगिक है रामकथा रू बुद्ध पीजी कालेज के पूर्व प्राचार्य व गायत्री
परिवार के जिला संयोजक डॉ. डी एस तिवारी का कहना है कि मोरारी बापू का राम
कथा के लिए कुशीनगर को चुनना यूं ही नहीं है। बुद्ध ने निर्वाण पूर्व अंतिम
भी दिया था। बुद्ध हिरण्यवती नदी पार कर कुशीनगर पहुंचे थे। अस्वस्थता की
स्थिति में वह उत्तर की ओर सिर कर लेट गए और मल्लों को बुलावा भेजा। शिष्य
आनन्द, उपवाण व सुभद्र मौजूद थे। सुभद्र की प्रार्थना पर बुद्ध ने अपना
अंतिम उपदेश दिया। इस कारण से भी कुशीनगर में मोरारी बापू की रामकथा की
प्रासंगिकता बढ़ जाती है।
No comments:
Post a Comment