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Tuesday, 12 January 2021

ईश्वर की भूमिका स्वयं भगवान श्रीकॄष्ण कर रहे है।

 

जिस प्रकार कुंडली से कुंडली में छुपे शुभ/अशुभ योगों को जाना जा सकता है, ठीक उसी प्रकार से व्यक्ति की धार्मिक आस्था और आधात्मिक उन्नति का आंकलन भी कुंड्ली अध्ययन से जाना जा सकता है। हम यह नहीं जानते है कि हम सबेहे ने जन्म क्यों लिया है? हम यह जीवन को क्यों जी रहे है। मृत्यु के बाद हमारा क्या होगा?

ज्योतिष का उपयोग करके, हम किसी व्यक्ति की कुंडली में तत्वों का अध्ययन कर सकते हैं और आध्यात्मिक प्राप्ति के अपने स्तर को तय कर सकते हैं। आध्यात्मिक ज्योतिष आत्मा की परिपक्वता जानने के लिए कुंडली के अध्ययन से संबंधित है। यह जानना भी संभव है कि क्या कोई व्यक्ति गुरु प्राप्त कर सकता है या नहीं।

आध्यात्मिक ज्योतिष के लिए एक उदाहरण के रूप में, हम परमहंस योगानंद की कुंडली का अध्ययन करेंगे। हम में से अधिकांश यह नहीं जानते कि हमने इस जन्म को क्यों लिया है, हम इन जीवन का नेतृत्व क्यों कर रहे हैं, मृत्यु के बाद क्या होता है और हमारे जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है। हम सभी सामान्य लोग मानव जीवन के मूल सिद्धांतों के ज्ञान के बिना हैं। लेकिन एक आध्यात्मिक व्यक्ति इन सभी सवालों के जवाब जानता है।

हम सभी ऊर्जा के एक विशाल लोक से इस धरा पर अवतरित हुए है, जिसे ‘परमात्मा’ या ‘आत्मा’ कहा जाता है। उस सर्वोच्च आत्मा को ईश्वर ने मनुष्य के रुप में अनेक छॊटी छॊटी ऊर्जाओं में विभाजित किया है। ऊर्जा के इसी सूक्ष्म अंश को बॉडी सोल के नाम से जाना जाता है। 


 

प्रत्येक जीवात्मा एक भौतिक शरीर का निर्माण करती है। और जीवात्मा कर्म के माध्यम से अपनी क्रियाएं करती है। इसी से व्यक्ति के शुभ अशुभ कर्मों का फल प्राप्त होता है। जो अंत में चेतना के स्तर का विस्तार करती हैं।

अपनी जीवन यात्रा में जीवात्मा को पता चलता है कि ईश्वर से अधिक जानने के लिए कुछ भी नहीं है, इसे जानने के बाद ही आत्मा उच्च चेतना तक पहुंच जाती है, जहां सर्वोच्च आत्मा में लीन हो जाती है। जिसे मोक्ष के रुप में जाना जाता है।

हम भी इस धरा पर जीवात्मा के रुप में हैं और इस दुनिया में हमारे होने का उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है। एक सामान्य व्यक्ति को इस अवथा तक पहुंचने में 1,00,000 से अधिक जन्म लगते हैं। एक योगी या आध्यात्मिक व्यक्ति इस अवस्था में 3 साल तक प्रतिदिन 8 घंटे ध्यान लगाकर पहुँचा जा सकता है। भगवत गीता के माध्यम से इसे समझने का प्रयास करते हैं-

महाभारत के युद्ध के समय इस धरा पर जीवात्मा का प्रतिनिधित्व अर्जुन कर रहा है, यह रथ रुपी भौतिक शरीर में निवास करता है। इस रथ का संचालन ५ इंद्री रुपी घोड़ों के द्वारा हो रहा है। यहां ईश्वर की भूमिका स्वयं भगवान श्रीकॄष्ण कर रहे है।

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