कुशीनगर के पांडेय पट्टी के शासकीय प्राथमिक स्कूल के शिक्षक मान्धाता सिंह की विदाई के वक्त ग्रामीण व बच्चे यूं ही नहीं रोए। इसके पीछे शिक्षक की लगन, कड़ी मेहनत व समर्पण व संघर्ष उभर कर सामने आया है। शिक्षक की विदाई के वक्त ग्रामीणों की रोते हुए तस्वीर को सोशल मीडिया पर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ. सतीश द्विवेदी ने पोस्ट करते हुए सैल्यूट किया है।
अमनून प्राइम लोकेशन पर तैनाती चाहने के दौर में मान्धाता सिंह को
जिले के दुदही ब्लाक के सुदूर गांव पांडेयपट्टी में तैनाती मिली तो उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया। 22 फरवरी 2014 को उन्होंने विद्यालय पर कार्यभार ग्रहण कियातो कई चुनौतियां सामने खड़ी थी। बच्चों व अभिभावकों में शिक्षा के प्रति अरुचि, टूटे फूटे कक्ष चारदीवारी विहीन विद्यालय जीर्ण शीर्ण स्थिति बयां कर रहे थे। ग्रामीणों ने भी उन्हें लौट जाने की सलाह दी। पर मान्धाता सिंह ने बिना विचलित हुए चुनौती स्वीकार की और पठन-पाठन का माहौल बनाने में लग गए।
जिले के दुदही ब्लाक के सुदूर गांव पांडेयपट्टी में तैनाती मिली तो उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया। 22 फरवरी 2014 को उन्होंने विद्यालय पर कार्यभार ग्रहण कियातो कई चुनौतियां सामने खड़ी थी। बच्चों व अभिभावकों में शिक्षा के प्रति अरुचि, टूटे फूटे कक्ष चारदीवारी विहीन विद्यालय जीर्ण शीर्ण स्थिति बयां कर रहे थे। ग्रामीणों ने भी उन्हें लौट जाने की सलाह दी। पर मान्धाता सिंह ने बिना विचलित हुए चुनौती स्वीकार की और पठन-पाठन का माहौल बनाने में लग गए।
छह
साल में न केवल विद्यालय में संसाधनों की स्थिति बेहतर हुई बल्कि छात्र भी
पढ़ने लिखने में रुचि लेने लगे। विद्यालय में नियमित रूप से आने वाले
छात्रों की संख्या 225 तक पहुंच गई। शिक्षक ने बच्चों में पढ़ाई के प्रति
ऐसी ललक पैदा कर दी कि विद्यालय से पांचवी उतीर्ण करने वाले छात्र माध्यमिक
व हाईस्कूल की कक्षाओं में भी प्रवेश लेने लगे। शिक्षक ने विद्यालय को
मुकाम तक पहुंचाने का सिलसिला सम्पर्क व संवाद से शुरू किया। अभिभावकों
विशेषकर महिलाओं को शिक्षा का मर्म समझाकर जागरूकता पैदा की। प्रयास रंग
लाया तो जो बच्चे घर व खेती किसानी व पशुपालन के कार्य में जुटे रहते थे,
स्कूल पढ़ने आने लगे।
बच्चों
को स्कूल भेजने के साथ अभिभावक विकास कार्य में भी सहयोग करने लगे। बांस
का खूबसूरत प्रवेश द्वार ग्रामीणों ने खुद बनाकर लगाया। परिसर के लो-लैंड
में मिट्टी भराई का कार्य हो या विद्यालय भवन की रंगाई पुताई, कक्ष
सुंदरीकरण, फर्श उच्चीकरण समेत हर एक कार्य में अभिभावक व ग्रामीण भागीदारी
निभाने लगे। शिक्षक व ग्रामीणों के बीच गहरी आत्मीयता के भाव की झलक
मंगलवार को शिक्षक की विदाई के वक्त देखने को मिली, जब विदा करते वक्त
ग्रामीण गले लग फूटकर रोए।
सोशल
मीडिया पर जब यह तस्वीर वायरल हुई तो प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री डॉ.
सतीश द्विवेदी ने इसकी जानकारी विभाग के अधिकारियों से ली। मंत्री ने न
केवल अपनी फेसबुक आईडी से वायरल तस्वीर, वीडियो पोस्ट की बल्कि लिखा
"शिक्षक हो तो ऐसा जिसके स्थानांतरण होने पर उसके विद्यार्थी ही नहीं पूरा
गांव रो-रोकर विदा कर रहा है"।
शिक्षक
मान्धाता सिंह यादव बताते हैं कि इस मुकाम को पाने में उन्होंने विश्वास व
जागृति का सहारा लिया। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर शिक्षण को साधना बताने
वाले मान्धाता के आदर्श पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हैं।
शिक्षा मंत्री की टिप्पणी को मान्धाता सिंह सर्वोच्च पुरस्कार मानते हैं।
वह अब अपनी सेवाएं गृहभूमि गाजीपुर में देंगे।
वह अब अपनी सेवाएं गृहभूमि गाजीपुर में देंगे।
No comments:
Post a Comment