भुवनेश्वर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंस (आईएलएस) ने कहा है कि ओडिशा
में कोविड-19 रोधी टीके की दोनों खुराक ले चुके करीब 20 प्रतिशत लोगों में
सार्स-सीओवी2 के खिलाफ एंटीबॉडी नहीं बन पायी और उन्हें बूस्टर खुराक की
आवश्यकता पड़ सकती है।
आईएलएस के निदेशक डॉ. अजय परिदा ने बताया कि
ओडिशा में अब तक 61.32 लाख से अधिक लोग कोविड-19 रोधी टीके की दोनों खुराक
ले चुके हैं जिनमें 10 लाख से अधिक लोग भुवनेश्वर में हैं और उनमें से
करीब 20 प्रतिशत लोगों में सार्स-सीओवी2 के खिलाफ एंटीबॉडी नहीं बन पायी
तथा उन्हें बूस्टर खुराक की आवश्यकता हो सकती है।
आईएलएस निदेशक ने
कहा, ‘‘हालांकि कोविड-19 से संक्रमित कुछ मरीजों में एंटीबॉडी का स्तर
30,000 से 40,000 है लेकिन टीके की खुराक ले चुके कुछ लोगों में यह 50 से
कम है। अगर एंटीबॉडी का स्तर 60 से 100 है तो हम कह सकते हैं कि वह व्यक्ति
एंटीबॉडी पॉजिटिव है।’’
उन्होंने कहा कि कोविशील्ड और कोवैक्सीन टीके की प्रभावशीलता केवल
70 से 80 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि कोविड-19 रोधी टीके की दो खुराक
लेने के बावजूद एंटीबॉडी बनाने में सक्षम न होना आनुवंशिक क्रम में
व्यक्तिगत अंतर के कारण हो सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘एंटीबॉडी जीनोम
अनुक्रमण अध्ययन के जरिए इस तथ्य का पता चला।’’
डॉ. परिदा ने कहा कि 0 से 18 वर्षीय आयु वाले बच्चों और किशोरों
के अलावा टीके की दोनों खुराक ले चुके ये 20 प्रतिशत वयस्क भी कोविड-19
संक्रमण की चपेट में आने के लिहाज से संवेदनशील हैं। उन्हें महामारी की
संभावित तीसरी लहर के दौरान अतिरिक्त सावधान रहने की आवश्यकता है।
भुवनेश्वर स्थित आईएलएस, इंडियन सार्स-सीओवी2 जीनोम कंसोर्टियम का हिस्सा है जो देशभर में फैली 28 प्रयोगशालाओं का नेटवर्क है।
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