उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश स्थित एक विश्वविद्यालय को उस सहायक
प्राध्यापक को बहाल करने का निर्देश दिया है, जिसकी सेवा मार्च 2007 में
समाप्त कर दी गई थी। शीर्ष अदालत ने सहायक प्राध्यापक को राहत देते हुए
माना कि उसकी बर्खास्तगी "अवैध" थी।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़,
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने
याचिकाकर्ता की अपील पर यह फैसला सुनाया। याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद उच्च
न्यायालय के फरवरी 2008 के फैसले को चुनौती दी थी। इस आदेश में कहा गया था
कि पद को निरस्त करने और उसकी सेवा समाप्त करने के विश्वविद्यालय के आदेश
में न कोई अवैधता है न ही कोई कमी।
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय
का आदेश निरस्त कर दिया और विश्वविद्यालय को सहायक प्राध्यापक को बहाल करने
का निर्देश दिया। पीठ ने उन्हें सिर्फ पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ, यदि कोई
हों, के प्रयोजन के लिए सेवाओं की निरंतरता का लाभ भी प्रदान करने का
निर्देश दिया।
पीठ ने 29 अक्टूबर के अपने फैसले में कहा, “उपरोक्त चर्चा के
मद्देनजर, हमने पाया कि अपीलकर्ता की सेवाओं की समाप्ति अवैध थी और कानून
के अनुरूप नहीं थी। नतीजतन, हम उच्च न्यायालय का आदेश रद्द करते हैं और
अपील की अनुमति देते हैं।"
शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता 31 मार्च, 2007 से बहाली की
तारीख तक की अवधि के लिए वेतन के किसी भी बकाये का हकदार नहीं होगा क्योंकि
उसने "काम नहीं, वेतन नहीं" के सिद्धांत पर उक्त अवधि में काम नहीं किया
है।
इसने कहा कि वह "वेतन के काल्पनिक निर्धारण" और अन्य सभी लाभों
का हकदार हैं, यदि अन्य व्यक्ति जो याचिकाकर्ता के समान पद पर है, उसे
विश्वविद्यालय द्वारा इस तरह के लाभ दिए गए हैं।
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