उच्चतम न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय का वह आदेश रद्द कर दिया जिसमें
माओवादियों से कथित तौर पर संबंध रखने के लिए गिरफ्तार व्यक्ति को राजद्रोह
सहित आतंकवाद रोधी कानून, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के
प्रावधानों के तहत तीन मामलों में आरोप मुक्त किया गया था।
केरल सरकार और अन्य की अपीलों पर गौर करते हुए, शीर्ष अदालत ने
कहा कि उच्च न्यायालय की एकल पीठ के सितंबर 2019 के आदेश के बारे में कहा
जा सकता है कि यह राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) कानून और शीर्ष अदालत
द्वारा पूर्व में निर्धारित कानून के तहत संवैधानिक प्रावधान के “पूरी तरह
उलट” है।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की
पीठ से राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा कि आरोपी को
इन आरोपों से मुक्त करने से इंकार करने संबंधी विशेष अदालत के आदेश के
खिलाफ आरोपी रूपेश की पुनरीक्षण याचिकाओं पर एनआईए अधिनियम की धारा 21 की
उप-धारा (2) के तहत अनिवार्य रूप से उच्च न्यायालय की खंडपीठ को सुनवाई
करनी चाहिए थी।
पीठ ने 29 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा, “ उपरोक्त को ध्यान में
रखते हुए, ये सभी अपीलें सफल समझी जाती हैं और उच्च न्यायालय द्वारा पारित
सामान्य निर्णय और आदेश ... अभियुक्त को आरोपमुक्त करने वाला - निरस्त किया
जाता है और मामले को पुनरीक्षण याचिका पर निर्णय लेने के लिए नए सिरे से
खंडपीठ द्वारा कानून के अनुसार और गुण-दोष के आधार पर उच्च न्यायालय में
भेजा जाता है।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि पुनरीक्षण याचिकाओं का फैसला उच्च न्यायालय
की खंडपीठ द्वारा जल्द से जल्द और संभव हो तो आदेश प्राप्त होने की तारीख
से छह महीने के भीतर किया जाना चाहिए।
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Thursday, 4 November 2021

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न्यायालय ने राजद्रोह और यूएपीए के कथित अपराधों से व्यक्ति को आरोप मुक्त करने का आदेश रद्द किया
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