उच्चतम न्यायालय ने इस बात की समीक्षा करने पर सहमति जताई है कि शिक्षा उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत आने वाली सेवा है या नहीं।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने
कहा कि इसी तरह का कानूनी मुद्दा एक अन्य मामले में लंबित है। पीठ ने इस
मामले को लंबित मामले के साथ संलग्न कर दिया।
पीठ ने 29 अक्टूबर के
आदेश में कहा, ‘‘2020 की दीवानी अपील संख्या 3504 (मनु सोलंकी और अन्य
बनाम विनायक मिशन विश्वविद्यालय) के लंबित रहने के संदर्भ में, उपभोक्ता
संरक्षण अधिनियम के तहत शिक्षा के सेवा होने या नहीं होने का मामला इस
न्यायालय के समक्ष लंबित है। इसे दीवानी अपील के साथ संलग्न किया जाए।’’
शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग
(एनसीडीआरसी) के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान यह
टिप्पणी की। आयोग ने अपने आदेश में कहा था कि शैक्षणिक संस्थान उपभोक्ता
संरक्षण अधिनियम, 1986 के दायरे में नहीं आते हैं और तैराकी जैसी
गतिविधियों समेत शिक्षा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अर्थ के तहत
‘‘सेवा’’ नहीं है।
याचिकाकर्ता का बेटा एक स्कूल में पढ़ता था,
जिसने 2007 में एक ‘ग्रीष्मकालीन शिविर’ के दौरान तैराकी समेत विभिन्न
गतिविधियों में भाग लेने के लिए छात्रों से 1,000-1,000 रुपए मांगे थे।
याचिकाकर्ता को 28 मई 2007 को पूर्वाह्न करीब साढ़े नौ बजे स्कूल से फोन
आया, जिसमें उससे कहा गया कि उसका बेटा अस्वस्थ है और वह तत्काल स्कूल आ
जाए।
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Thursday, 4 November 2021

शिक्षा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत आने वाली सेवा है या नहीं: न्यायालय करेगा विचार
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