क्या आपके पति, पिता, भाई.. बिजनेस सम्बन्धी यात्राएं करते हैं???
क्या वे बड़ी बड़ी कम्पनियो के मालिको, नेताओ से, अफसरों तक सीधी पहुंच रखते है। क्या किसी बड़े मंत्री, मुख्यमंत्री से अबे-तबे की भाषा मे बात कर लेते हैं। क्या वापस आकर बड़े बड़े नामचीनो के चमकीले फोटो, खुद के साथ दिखाकर शेखी बघारते हैं?? बढ़िया। फिर तो बिजनेस भी बढ़िया जा रहा होगा?? दिन दूना , रात चौगुना ...
क्या कहा??? बिजनेस चौपट हो रहा है। नए ठेके न आ रहे है, पेमेंट न निकल रहा है, छोटे छोटे काम अटके हुए हैं। वही नेता, अफसर आपकी फर्म के खिलाफ , आपके हितों के नुकसान वाले फैसले करते है। कोई मुरव्वत न छोड़ते है??
फिर हुआ ये कि शाम को आप घूमने निकलें, और किसी पुलिसवाले ने दो लट्ठ जमा दिए। उन्होंने तुरंत "ऊपर" फोन किया, तो जवाब मिले.. कि "भई, वहीं खुद सुलट लो"। आपने उस लट्ठमार को 500 देकर और हाथ जोड़कर इज्जत बचाई।
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विदेश यात्राओं और विदेश नीति की सफलता का एक ही पैमाना है- व्यापार कितना बढ़ा। फेवर कितने मिले, जिससे व्यापार को गति मिली। इसके साथ स्ट्रेटजिक इंटरेस्ट भी दूसरा पैमाना है, याने वक्त जरूरत पर दूसरा पक्ष आपके साथ विनिन्न फोरम पर खड़ा हो, साथ दे।
सात सालों में दुनिया मे डंका बजाने के बाद हमारे हाथ विदेशों की चंद तस्वीरें आयी है। उनमें नरमुंड ही नरमुंड है। चीखते चिल्लाते, नारे गुंजाते (हिंदी में)। मंच पर चकाचौंध है, बॉडी लैंग्वेज है, सेलेब्रिटीज़ है, साउंड इफेक्ट है, मीडिया है, दीवानगी है।
जो नही है वो व्यापार का विकास है, इंटरनेशनल ट्रेड में घटती हिस्सेदारी है, द्विपक्षीय व्यापारों में बढ़ता ट्रेड डेफिसिट है। हर नए अंतरास्ट्रीय ट्रेड समझौतों में हमारी अनुपस्थिति है। वीजा, टैरिफ में नुकसान के सौदे हैं। नाक के बल हर साल गिरती हुई रेटिंग हैं। घटता हुआ इन्वेस्टमेंट और बढ़ता हुआ कर्ज है।
फिर जब आपकी सीमा पर ड्रेगन ने आग उगली। एक देश आपके फेवर में न बोला, न यूएन, न अड़ोसी पड़ोसी, अमेरिका भी मध्यस्थता ऑफर कर रहा है। वही अमेरिका जिसने 1962 में बयान नही, अपने एयरक्राफ्ट कैरियर हमारे लिए रवाना कर दिए थे। नतीजा- अमरीकी मदद पहुँचने के टेरर में ही चीन ने एकतरफा युद्ध विराम कर जीते हुए क्षेत्र खाली कर दिए थे।
तो न व्यापार, न स्ट्रेटेजिक मदद। सड़क पर उस लठमार को 500 रुपये देकर और हाथ जोड़कर, इज्जत बचाने के जब आप घर पहुंचें,.. तो पता है आपको सबसे पहले क्या करना चाहिए।
... ड्राइंग रूम में फ्रेम की हुई उन चमकीली तस्वीरों को आग लगा देनी चाहिए।
लेखक : मनीष सिंह जी की वाल से।
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