सचिन पायलट सौम्य छवि के योग्य नेता माने जाते हैं. वे उप-मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष थे. उनके राज्य में करीब 28,000 केस हैं. लेकिन वे मुख्यमंत्री बदलने और सत्ता हथियाने का खेल खेल रहे हैं.
अशोक गहलोत तो पुराने चावल हैं. पुराना कांग्रेसी कैसा होता है, यह बताने की जरूरत नहीं. महामारी में लोगों की जान बचाने की जगह वे नेताओं के फोन टैप करवा रहे हैं, सचिन पायलट को नोटिस भिजवाने और निपटाने में मशगूल हैं.
भाजपा ने तो महामारी के बीच ही एक राज्य में सरकार गिराकर अपनी सरकार बनवा ली. उनका तो नारा ही है 'आपदा में अवसर'. राजस्थान का संकट अगर कांग्रेस की 'आपदा' है तो उम्मीद कीजिए बीजेपी उसे 'अवसर' में बदल लेगी.
खुदा न खास्ता राजस्थान में भी बीजेपी की सरकार बन सकती है. भारत की सरकारों और पार्टियों के हाथ में देश का खजाना है. खुला खेल फर्रुखाबादी खेलने में अब कोई शर्म लिहाज का भी मसला नहीं है.
नेता सब एक जैसे होते हैं. चाहे वह शातिर छवि वाला हो, चाहे वह सौम्य छवि वाला हो. चाहे बीजेपी का हो, चाहे कांग्रेस का हो. चाहे युवा हो, चाहे बूढ़ा. धूर्तता नेतागिरी की पहली शर्त है, घाघपन पहली योग्यता और छल-छद्म प्राथमिक जरूरत. यह शायद सत्ता के चरित्र के कारण होता हो.
महामारी के बीच चुनी हुई सरकारें गिराने और बनाने का खेल खेलने के लिए जनता नाराज हुई हो, ऐसी कहीं चर्चा तक न सुनाई दी. जिसमें नेता मशगूल हैं, जनता उसी में मगन है.
कृष्ण कांत जी की वाल से साभार।
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