विनय तिवारी और केके शर्मा को पुलिस सेवा से बाहर करने की तैयारी चल रही है , आरोप है कि इन दोनों ने विकास दुबे के लिए मुखबिरी की थी।
ये तो वही हाल हुआ कि बाबू साहब से नहीं जीत पाए तो उनके दरवाजे पर बंधी भैस को दो मुक्का मारकर आ गये।
प्रशासन द्वारा इन दोनों की बर्खास्तगी ऐसे ही भैंस को मुक्का मारने जैसी है।
इनकी बर्खास्तगी को तो न्यायपालिका रद्द कर देगी क्योंकि इनके उपर केवल मोबाइल से बात करने का आरोप है न कि क्या बात हुई इसकी पुष्टि हुई है अगर मोबाइल पर बात करने के लिए इनकी बर्खास्तगी होती है तो इनके पास अपने बचाव में यही तर्क है कि चूंकि विकास दुबे का नाम न तो गैंगस्टर में था और ना ही उनके पूर्व किसी अधिकारी ने उसे संदिग्ध लोगों की सूची में रखा था इसलिए एक जनप्रतिनिधि होने के नाते इलाके की शांति-व्यवस्था के बारे में चर्चा करने के लिए थानेदार या हल्का इंचार्ज ऐसे प्रभावशाली लोगों को फोन करता ही रहता है जो कि किसी भी तरह उनके कर्तव्यनिष्ठा के बाहर की चीज नहीं है ऐसे में यदि विकास दुबे दुर्दांत अपराधी था और उसका नाम किसी सूची में नहीं था तो उससे बात करने के अपराध में केवल इनको ही क्यों इनके पहले के सारे थानेदार और चौकी इचार्ज का सीडीआर निकलवाए और उनको भी बर्खास्त करे।
बाकी तो आइपीएस लाबी ही इनको बचा लेगी क्योंकि यदि इस मामले में ये फंसे तो बड़े बड़े आइएएस आइपीएस भी इनके साथ ही जेल में सेल्फमेड चक्की का आटा खाते नजर आएंगे।
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