दरअसल "रूल आॅफ लाॅ" में इनकाउंटर की यदि जगह नहीं और फिर भी यदि यह होते हैं तो इसके लिए देश की जनता भी कम ज़िम्मेदार नहीं है।
यही जनता "रूल आॅफ लाॅ" में तेलंगाना के सामूहिक बलात्कार के आरोपियों का जब इनकाउंटर होता है तो जश्न मनाती है।
यह पता भी नहीं करती कि इनकाउंटर की कहानी फर्जी है या असली।
यही जनता "रूल आॅफ लाॅ" में भोपाल में लकड़ी की चाभी से जेल का ताला खोलकर भागे लोगों के इनकाउंटर पर भी जनता जश्न मनाती है।
यह पता भी नहीं करती कि इनकाउंटर की कहानी फर्जी है या असली।
यही जनता "विकास दुबे" के इनकाउंटर पर भी मूक सहमति देती है।
यह पता भी नहीं करती कि इनकाउंटर की कहानी फर्जी है या असली।
"रूल आॅफ लाॅ" के प्रति सबसे अधिक जिम्मेदारी देश की जनता की है , जो सांप्रदायिक भाँग खाकर मस्त है।
उसे रूल आॅफ लाॅ से क्या मतलब।
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