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Monday, 14 September 2020

निजीकरण..........*मेरी सोच मेरा नजरिया*-समाजसेवी गणेश प्रसाद मिश्रा



आजकल अक्सर खबरे सुर्खियों में रहती है, केंद्र सरकार किसी न किसी सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियो की हिस्सेदारी बेचती रहती है..........
और शोसल मीडिया पर एक उफान सा आ जाता है, सरकार शोसल मीडिया के शूरवीरों की कम्पनी निजी क्षेत्र को बेच रही है....
चलिये मान लिया सार्वजनिक क्षेत्र बेहद बढिया है, 
फिर बीएसएनएल डूबने के कगार पर क्यों है? क्या सरकार कर्मचारियों को वेतन नही देती या ग्राहकों से शुल्क नही लेती?
सरकारी अस्पतालों की स्थिति क्या है? क्या सरकार इन पर पैसा नही खर्च करती?
सरकारी विद्यालय की स्थिति क्या है? क्या ये निजी क्षेत्र से कम वेतन पाते है? या कम योग्य होते है?
आखिर सबसे ज्यादा विमानों वाला व सबसे महंगा एयर इंडिया घाटे में क्यों रहता है? निजी विमान कम्पनिया फायदे में क्यों रहती है?
सरकारी डाकघर घाटे में क्यों रहता है, निजी कुरियर कम्पनिया फायदे में क्यों रहती है?
इस प्रकार से हर क्षेत्र का यही हाल है, बैंक हो या बीमा क्षेत्र परिवहन हो या ऊर्जा....

इसका जवाब भी सबको मालूम है,  इनके घाटे का कारण क्या है?
असल मे सरकारी संपत्ति का मतलब हो गया है बाप का माल जिसे सरकारी कर्मचारी चाहे जिस प्रकार से चलाए और उसके उपभोक्ता चाहे जिस प्रकार से उपयोग करे....

उदाहरण के तौर पर
 सरकारी बैंकों का हाल देख लीजिए सरकारी योजनाओं का लाभ आमजनता तक कितना पहुंचता है? बिना रिश्वत दिए किसका लोन पास हुआ है? साथ ही बैंको के कर्मचारियों का ग्राहकों के साथ व्यवहार किस प्रकार का रहता है? वही इन्ही बैंको के ग्राहक सेवा केंद्रों की हालत देख लीजिए जो कमोवेश निजी ही है।

बीएसएनएल भारीभरकम बजट व कर्मचारियों वाली कम्पनी है पर उसके नेटवर्क का क्या हाल है? साथ ही निजीकरण के विरोधी कितने लोग इसकी सेवाएं लेते है?
मैं तो इसका पुराना ग्राहक था पर मजबूरन नम्बर पोर्ट करवाना पड़ा ऊब कर, सिर्फ भ्रष्टाचार व निकम्मे कर्मचारियों की भेंट चढ़ रही कम्पनी, 

सरकारी डाकघर की रिश्वत खोरी व निजी कम्पनी की कुरियर सुविधा का अंतर भी एक उदाहरण है, 
ऐसे ही उदाहरण हर क्षेत्र में है, समय बदल रहा लोगो को अपने पैसे के बदले बेहतर पैसे व सम्मान की जरूरत है, लेकिन सरकारी कर्मचारियो का रवैया वही है, ये कभी नही बदलने वाले बेहतर है कि सिस्टम ही बदला जाए, इसी का परिणाम है निजीकरण जो कि वर्तमान परिवेश में आवश्यक है, 
असल मे हम सब की एक ही मानसिकता है, चाहे वह आमजनता हो या सरकारी कर्मचारी, सिर्फ वही भ्रष्ट्र नही है जिसे मौका नही मिला है, मौका मिलते ही.......

निजीकरण के विरोधी घटिया सुविधाओ पर भी हायतौबा करेंगे सरकार को दोष देंगे, अब सरकार तो कम्पनी चलाएगी नही चलाएंगे कर्मचारी ही जो कि सरकारी का ठप्पा लगते ही वेतन के साथ ऊपरी कमाई और आराम दोनो खोजने लगते है, 
साथ ही जब बीएसएनएल या अन्य किसी कम्पनी से निकम्मो की छंटनी होगी कि नए को मौका मिले उसमे भी हायतौबा करेंगे, अगर ये निकम्मे सही ही होते तो कम्पनी डूबती क्यों? सुविधाएं बेहतर क्यों नही? बेहतर है कि इन्हें हटाकर नए को मौका दिया जाए? 

रही बात निजीकरण की तो
निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे क्षेत्र या उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाता है।

दूसरे शब्दों में हम इसे ऐसे भी कह सकते है कि निजीकरण से आशय ऐसी औद्योगिक इकाइयों को निजी क्षेत्र में हस्तांतरित किये जाने से है जो अभी तक सरकारी स्वामित्व एवं नियंत्रण में थी।

सार्वजनिक क्षेत्र सरकारी एजेंसियों द्वारा संचालित आर्थिक प्रणाली का हिस्सा है। निजीकरण में सरकारी संपत्तियों की बिक्री या निजी व्यक्तियों और व्यवसायों को किसी दिए गए उद्योग में भाग लेने से रोकने वाले प्रतिबंधों को हटाना भी शामिल हो सकता है।

निजीकरण के समर्थकों का कहना है कि निजी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा अधिक कुशल प्रथाओं को बढ़ावा देती है, जो अंततः बेहतर सेवा और उत्पाद, कम कीमत और कम भ्रष्टाचार उत्पन्न करती है।

दूसरी तरफ, निजीकरण के आलोचकों का तर्क है कि कुछ सेवाएं - जैसे कि स्वास्थ्य देखभाल, उपयोगिताओं, शिक्षा और कानून प्रवर्तन - सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक नियंत्रण सक्षम करने और अधिक न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करने के लिए होना चाहिए। जो कि इन दीमकों के रहते सम्भव ही नही है, वैसे भी सरकार का कार्य प्रशासन चलाना व निजी क्षेत्र पर नियंत्रण रखना है न कि व्यवसाय करना, 
जिन्होंने पुराना दौर देखा होगा या जिन्हें वो याद होगा जब स्कूटर खरीदने तक के लिये मंत्रियों से सिफारिश करवानी पड़ती थी.....
आज भी सरकारी क्षेत्र का वही हाल है,

मेरा मानना है कि एक नियंत्रण के साथ इस देश मे निजीकरण की जरूरत है, हर क्षेत्र में.....
वैसे भी क्या अंतर है सार्वजनिक क्षेत्र व निजी क्षेत्र में? 
निजी क्षेत्र में आरक्षण नही बल्कि काबिलियत को मौका मिलता है
 पेंशन अब सरकारी नौकरी में भी नही बची, 
नौकरियां सरकारी क्षेत्र से ज्यादा निजी क्षेत्र में है, हा फर्क बस इतना है कि काम करने वालो को मिलती है निकम्मो को नही, और यही नियम कमोवेश सरकारी क्षेत्र में भी लागू हो रहा......
लोगो को सुविधाएं व सहूलियत ज्यादा निजी क्षेत्र में मिलती है, 
उदाहरण सरकारी बैंकों के ग्राहक सेवा केंद्र व निजी बैंक या बीएसएनएल या अन्य टेलीकॉम कम्पनी, 

निजीकरण के फायदे और नुकसान दोनो है, अगर सरकार सही है और सरकारी नियंत्रण सही से रख पाती है तो फायदे है और सरकारे अगर इसमें आरक्षण और वसूली शुरू करती है तो नुकसान है.......
बेहतर है कि युवा पीढ़ी इसे स्वीकार करे और इसके अनुसार खुद को तैयार करे, 

और हा अगर आरक्षण के चक्रव्यूह से निकलना है और योग्यता को स्थान देना है तो निजीकरण ही एकमात्र विकल्प है वर्तमान में, 

सबकी अपनी अपनी राय हो सकती है यह मेरे खुद के विचार है।
रिपोर्ट-अंजनी त्रिपाठी

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