बिहार की जनता को "झूठ के पैकेज" की आदत हो चुकी है। - National Adda

Breaking

Home Top Ad

Post Top Ad

Wednesday, 16 September 2020

बिहार की जनता को "झूठ के पैकेज" की आदत हो चुकी है।

🚸🚸बिहार की जनता को "झूठ के पैकेज" की आदत हो चुकी है।

कुछ दिन पहले दिल्ली मुंबई से भाग रहे जिन बिहार-यूपी के गरीबों को ट्रेन और बस नहीं दी गई थी, उन्हीं के लिए करोड़ों के चुनावी पैकेज घोषित हो रहे हैं. यह वैसा ही है कि जीवित माता-पिता को कभी एक गिलास पानी मत दो, लेकिन जब वे न रहें तो खूब धूमधाम से श्राद्ध करो. इसका मतलब है कि वक्त पर जो जरूरी है, उसकी जगह आपको सिर्फ अपने भौकाल की चिंता है.


नए बिहार पैकेज की घोषणा सुनकर मैंने सर्च किया कि पिछले विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री ने जो सवा लाख करोड़ का पैकेज घोषित किया था, उसका क्या हुआ. उस घोषणा की लालू यादव ने बड़ी मशहूर मिमिक्री की थी. उस बारे में 2017 तक खबरें छप रही थीं कि बिहार को अब भी उम्मीद है कि मोदी अपना वादा निभाएंगे.

प्रभात खबर के मुताबिक, "मार्च 2017 में बिहार सरकार ने विधान परिषद में बताया था कि प्रधानमंत्री की ओर से बिहार के लिए घोषित सवा लाख करोड़ रुपये का विशेष पैकेज महज दिखावा साबित हुआ है. इस पैकेज में पुरानी, पहले से प्रस्तावित और वर्तमान में चल रही योजनाओं के लिए आवंटित राशि को जोड़ कर महज री-पैकेजिंग कर दी गयी है. एक लाख 25 हजार करोड़ में एक लाख आठ हजार 667 करोड़ पहले से प्रस्तावित और चल रही योजनाओं के लिए है. मूल रूप से 10,368 करोड़ ही नये बजट से उपलब्ध हो पा रहा है."

नई दुनिया ने हाल ही में लिखा कि नीलामी की बोली लगाने के अंदाज में प्रधानमंत्री ने बिहार को ​जो सवा लाख करोड़ का पैकेज देने की घोषणा की थी, संभवतः उसका पांच फीसदी भी बिहार को नहीं मिला.

यानी वह सवा लाख करोड़ का पैकेज जुमला साबित हुआ.

ताजा खबर है कि प्रधानमंत्री अगले दस दिनों में बिहार को करीब 16 हजार करोड़ रुपये की योजनाओं का तोहफा देंगे. उसी बिहार में इतने दिनों से बाढ़ का संकट है. छिटपुट रिपोर्ट आती रही कि लाखों लोग बाढ़ से उजड़ गए हैं और कोई मदद नहीं पहुंच रही है. अब उसी बिहार की बाढ़ के लिए भी पैकेज घोषित हो रहा है.

गुरुवार को भी प्रधानमंत्री ने कई योजनाओं की घो​षणा की थी. मार्च में लॉकडाउन के बाद जो तबाही मची थी, हम सबने देखा है. कहा जा रहा था कि यह 1947 के बाद का सबसे भयावह पलायन है, जिसमें लोगों ने रास्तें में जान गवां दी. लेकिन सरकार कान में रूई ठूंसकर चुपचाप सब देखती रही.

क्या गजब है कि भारत के नेताओं और जनता की प्राथमिकताओं में कोई मेल नहीं है. जनता पर जब संकट आता है तब नेता कुंडली मारकर बैठकर जाता है. चुनाव में जब नेता की कुर्सी पर संकट आता है, तब नेता सक्रिय हो जाता है और पैकेज घोषित करता है.

वैसे कोरोना के 20 लाख करोड़ के पैकेज का क्या हुआ? इसे जाने दें, पिछले बिहार चुनाव में '50 हजार करोड़... 60 हजार करोड़... 70 हजार करोड़... 80 हजार.. 90 हजार... 1 लाख.. सवा लाख करोड़... का पैकेज दिया' वाले जुमले का क्या हुआ?

बीती 15 मई को सवा लाख करोड़ के पैकेज की याद दिलाने वाले जीतन राम मांझी अब उसी एनडीए का हिस्सा हो चुके हैं, जिसकी तरफ से प्रधानमंत्री ने ये जुमला फेंका था.

बिहार के छोटे छोटे न्यूज पोर्टल पर इस सवा लाख करोड़ के जुमले की चर्चा हो रही है. लेकिन हमारा मुख्यधारा का मीडिया मुद्दों पर चर्चा नहीं करता, वह प्रधानमंत्री के मास्टरस्ट्रोक गिनता है. नये मास्टरस्ट्रोक का इंतजार कीजिए. हमारे यूपी बिहार की जनता को बस दमदार भाषण चाहिए, भले ही वह झूठ का पुलिंदा हो. हमारी जनता को झूठे भाषण और झूठ के पैकेज की आदत हो चुकी है।
कृष्ण कांत की रिपोर्ट।

🇮🇳भारत की मुख्य मीडिया से गायब, जन सरोकार से जुड़ी खबरों के तार्किक विस्लेषण के लिए जुड़े नेशनल अड्डा न्यूज़ ग्रुप से।
📲www.nationaladda.com

No comments:

Post a Comment


Post Bottom Ad