लाकडाऊन के पहले की बात है। एक इंटरनैशनल सेमीनार में तुर्की जाने वाला था।
मेरी उस कंपनी ने एक व्यवस्था की कि पूरे देश से जितने लोग भी उस सेमीनार में जाने वाले थे उनकी एक ट्रेनिंग कराई जाए और इसके लिए कंपनी ने एक ट्रेनिंग प्रोग्राम रखा जो हमारे पूरे बिजनेस पर ही आधारित था।
जिस ट्रेनर को कंपनी ने प्रज़ंटेशन देने के लिए बुलाया था उसने मात्र 2 घंटे के अपने प्रज़न्टेशन में मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं तो उसकी मार्केटिंग स्ट्रेडजी , तर्क और तथ्यों के साथ पुख्ता जानकारी का कायल हो गया।
प्रज़ंटेशन के बाद डिनर हुआ तो मैं अपनी प्लेट लेकर उसी के पास चला गया कि चलो कुछ और सीख लूँ , वह बंदा उस समय खाने की प्लेट लिए दो तीन लोगों के साथ राजनीति पर बात कर रहा था , मैं भी बैठ गया।
उसकी बातचीत से मुझे अंदाज़ा हो गया कि वह "भक्त" है।
वही व्हाट्सअप युनिवर्सिटी का ज्ञान , वही सोशलमीडिया का झूठ सच लेकर सबको यह समझा रहा था कि मोदी जी सही जा रहे हैं।
मैंने सोचा कि खाने पर कंसन्ट्रेट करो , खाने के बाद मैं उससे मिला और पूछा कि क्या तुम वही व्यक्ति हो जो अभी प्रज़टेशन दे रहे थे ? बोला कि हाँ क्यूँ ? मैंने कहा कि अभी जब राजनीति की बात कर रहे थे तब ना वह स्ट्रेडजी दिखी , ना तर्क ना तथ्य , वही बकवास बातें , व्हाट्सअप के फारवर्डेड मैसेज।
वह धीरे से मेरे कान में आकर बोला
मोदी जी को स्ट्रेडजी , तर्क और तथ्य से डिफेन्ड नहीं किया जा सकता भाई , उनकी तरह ही बकलोली करके ऐक्स्ट्रा 2AB निकालना पड़ता है।
मैंने कहा "फिर मिलते हैं"।
मो जाहिद
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