एक लड़ाई, दो विजेता.. दो विजय स्तम्भ !!
किस्सा पन्द्रहवीं शताब्दी का है। जब चित्तौड़ के राजा, राणा कुम्भा के यहाँ एक व्यक्ति पोलिटीकल मर्डर करके, मांडू जाकर छिप गया। मांडू के सुल्तान ने उसे शरण दे दी और कुम्भा के मांगे जाने के बावजूद पेश न किया।
भन्नाए कुम्भा ने हमला किया। सारंगपुर नाम की जगह पर दोनो की फौज टकराई और सुल्तान बुरी तरह हारा। कुम्भा उसे बन्दी बनाकर चित्तौड़ ले गए। छह माह जेल में रखा, फिर छोड़ दिया। इस युध्द में विजय की याद में उन्होंने एक विजय स्तम्भ बनवाया, जो बायीं तस्वीर में है, चित्तौड़ में स्थित है। बड़ा फेमस है।
सुल्तान साहब लुट पिट कर जब मांडू पहुंचे तो शेर बन गए। सबको बताया कि लड़ाई उन्होंने जीती थी। इस महान विजय की याद में एक विजय स्तम्भ बनवाया, जो दायीं तस्वीर में है। यह मांडू में अशर्फी महल के पास स्थित है।
दांयी ओर वाले विजय स्तम्भ की हालत बड़ी खराब है। मोदी सरकार को इसे उखड़वा कर, गलवान में लगवाना चाहिए।वहां हमारी भारी जीत की एक यादगार तो होनी चाहिए।
होनी चईये न मितरों ..
मनीष सिंह
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