नादिया बेग :-
यदि आप पढ़ना चाहें और दुनिया के तमाम परिक्षाओं और बाधाओं को पार करके अपनी मंज़िल पाना चाहें तो यह किसी भी बुरे से बुरे हालात में संभव है।
आप को उदाहरण देखना है तो आप "नादिया बेग" को देख सकते हैं जिसने सिविल सर्विसेज के कल घोषित हुए परिणाम में 350 रैंक के साथ सफलता प्राप्त की और आईएएस बनी हैं।
काश्मीर , जहाँ पिछले कई दशकों से सबसे बुरे हालात हैं , वह काश्मीर जो पिछले 1 साल से संपुर्ण लाकडाऊन की स्थीति में है , उस काश्मीर का सीमावर्ती कुपवाड़ा जो पीरपंजाल और शम्सबरी पहाड़ों में बसा है , वहाँ के लोगों का जीवन कैसा होगा समझा जा सकता है।
शायद दुनिया का सबसे बदतरीन।
जहाँ हर रोज फौज़ी और आतंकियों की संगीनों की तड़तड़ाहट होती है , जहाँ हर दिन आतंकी और फौजियों के बीच मुठभेड़ होती है , जहाँ हर दिन अखबार इनकाउंटर की खबरों से भरे पड़े रहते हैं।
कुपवाड़ा काश्मीर का सबसे अधिक आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र है , आप गुगल पर सिर्फ कुपवाड़ा लिखकर सर्च करिए केवल आतंकी और आतंकी घटनाओं का परिणाम मिलेगा।
वहाँ के जीवन की आप कल्पना करिए , आप कर सकते हैं क्युँकि आप अभी 4 लाकडाऊन से गुज़रे हैं , उस स्थिति को भाँप सकते हैं कि जब वैसी स्थिति में जब घर से निकलना असंभव हो और हर रोज फौजियों की दरवाजे पर दस्तक हो तो घर के लोगों का जीवन कैसा हो सकता है।
ऐसी मुश्किल स्थिति में "नादिया बेग" यदि सिविल सर्विसेज़ की परीक्षा को यदि क्रेक कर देती है तो इससे बुरी स्थिति में सफलता का उदाहरण देश में और कहाँ होगा ?
2018 में प्रीलिम्स भी पास नहीं कर पाई निदिया बेग ने जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की और अपने उद्देश में रम गयीं। और अपने दूसरे प्रयास में 2019 में वह तब सफल हो गयीं जब काश्मीर के हालात सबसे बुरे हैं।
सोचिए कि क्या बाकी देश के मुसलमान नादिया बेग से अधिक बुरी परिस्थीति में रह रहे हैं ? जवाब होगा "नहीं" बिल्कुल नहीं।
दरअसल मुस्लिम देशों में होती घटनाओं में ही अपना सारा दिमाग लगा देने वाले लोग जब नौकरी की बात आती है तो 70 साल की सरकारों को कोस कर खुद की अक्षमता का बचाव करते हैं पर यह नहीं सोचते कि उसी वयवस्था को चीर कर एक लड़की "नादिया बेग" यदि सफल हो सकती है तो कोई और क्युँ नहीं ?
अपना सारा दिमाग और उर्जा इरान तुरान पाकिस्तान में होती घटनाओं पर छाती कूटने में लगाने वाले लोग यदि अपने घर में भी झांक लें तो उनको कुछ समझ में आ जाए नहीं तो अंधों को कोई भी चश्मा पहना दिजिए उनको दिखाई नहीं देगा। ऐसे ही लोगों का भविष्य टायर के पंचरों , पंटिंग के ब्रश और कारपेन्टरी में खो जाता है।
ऐसे ही लोगों को भारत का समाज साइडलान कर देता है और फिर यह रोते हैं सेकुरिज्म के नाम पर , देश की सरकारों द्वारा 70 साल की की गयी साजिश के नाम पर।
पर सोचिए कि नादिया बेग बनने की कोशिश कितने लोग करते हैं ?
नादिया बेग को सलाम।
मो जाहिद
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