उमा भारती ने कहा है कि 'बीजेपी कार्यकर्ता राम मंदिर को अपनी बपौती ना समझें'. लेकिन समस्या यही है कि बीजेपी समझ रही है.
कल एक शख्स ने मुझसे कहा, 'ये तो वैसा ही हुआ कि मुझे बेटा हो तो मैं मसवारे में अपने बाप को ही आने दूं. बीजेपी की स्थापना की अटल और आडवाणी ने, मंदिर आंदोलन शुरू किया आडवाणी ने, पार्टी को मकाम तक पहुंचाया आडवाणी ने, वह अच्छा था या बुरा था, लेकिन बीजेपी के लिए तो आडवाणी ने ही हर मार्ग प्रशस्त किया. बीजेपी का अहंकार देखिए कि आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जीवित हैं, परंतु भूमिपूजन में नहीं जाएंगे.'
हमने पूछा, ऐसा हो क्यों हो रहा है? आपका क्या ख्याल है?
वे बोले, 'ऐसा इसलिए कि बीजेपी के लिए भगवान राम जनता की आस्थाओं के राम नहीं हैं, बीजेपी के लिए राम मंदिर मात्र एक चुनावी रण है. इसे जीतने के चक्कर में वे अपना और पराया सब भूल गए हैं'.
उनकी बात खत्म होते समय मैंने सोचा कि राम को मानने वाली जनता ये भी मानती है कि 'अहंकार तो रावण का नहीं टिका तो फिर फलाने कौन खेत की मूली हैं'. ये हर तुर्रम खां के बारे में सही है. राम के समक्ष रावण से बड़ा प्रतिद्वंद्वी आज तक न हुआ. अहंकार किसी का नहीं टिकता.
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहां तख़्त-नशीं था
उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था.
कृष्ण कांत
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